Do not look for a job or relationship that you want/need; instead look for one where you are wanted/needed.
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मेरा पहला DSLR कैमरा और कुछ तस्वीरें
पिछले 29 तारीख को एक अपना पहला DSLR कैमरा खरीदा – Nikon D5300. काफी रिसर्च करने के बाद मेरे बजट के अन्दर सबसे अच्छा कैमरा यही लगा. इससे पहले मेरे पास कैनन का एक छोटा डिजिटल कैमरा था – S95. हालांकि अपनी कैटेगरी में वह काफी बेहतरीन कैमरा था पर छोटे पॉइंट एंड शूट कैमरों की अपनी लिमिटेशंस होती हैं. उनमें फिक्स्ड लेंस होता है, सेटिंग्स में बहुत ज्यादा बदलाव आप नहीं कर सकते, फोकस की समस्याएँ होती हैं. इसलिए इस बार DSLR कैमरा खरीद कर फ़ोटोग्राफी सीखने का निर्णय लिया.
सबसे ज्यादा समस्या लेंस को लेकर हुई. मुझे पता नहीं था कि इतने तरह के लेंस होते हैं. :) सही लेंस के चुनाव के लिए काफी ज्यादा रिसर्च करना पड़ा और कई मित्रों की सलाह लेनी पड़ी. अंत में 35mm f1.8G लेंस लेने का निर्णय किया. इस लेंस की फोकल लेंथ 35mmपर फिक्स्ड होती है. इसका मतलब यह हुआ कि इससे आप ज़ूम इन या ज़ूम आउट नहीं कर सकते. आपको खुद ही चलकर सब्जेक्ट के करीब या दूर जाना पड़ेगा. यह शुरू में बहुत बड़ी लिमिटेशन की तरह लगा पर नेट पर रिसर्च के दौरान पता चला कि अधिकाँश प्रोफेशनल फोटोग्राफर शुरू में फिक्स्ड प्राइम लेंस से ही फोटोग्राफी करने की सलाह देते हैं. क्योंकि इससे आपको शुरू से ही आसानी से चीज़ों को ज़ूम करके फोटो लेने की आदत नहीं पड़ती. आप सही तरीके से फोटो को फ्रेम और कम्पोज करना सीखते हैं. एक बार इन बारीकियों की समझ हो जाने के बाद जब आप ज़ूम वाले लेंस का इस्तेमाल करते हैं तो आपकी फोटोग्राफी में और निखार आता है. इसलिए मैंने पहले लेंस के रूम में 35mm प्राइम लेंस लेने का निर्णय लिया. इस लेंस की एक और अच्छी बात यह है कि इसका एपरचर 1.8 है जो कि काफी वाइड है. इसका मतलब यह हुआ कि लेंस कम समय में ज्यादा लाईट को कैमरे में जाने देता है जिससे लो लाईट सिचुएशन में या फिर चलती-फिरती चीजों की फोटो भी ठीक आती है.
नीचे कुछ तस्वीरें हैं जो कैमरा खरीदने बाद अपनी यूनिवर्सिटी के आस पास ली थी.
हमारी यूनिवर्सिटी के पास कोरिया के प्रसिद्ध सेनापति ‘गांग गाम छान(강감찬)’ की प्रतिमा सियोल की एक सड़क पर पुरानी घड़ियाँ और आर्टिफिशल ज्वेलरी बेचते एक विक्रेता ट्रेडिशनल कोरियन स्ट्रीट फ़ूड स्टाल फूलों की दुकान -
TOP 20 Coolest and Funniest Websites
Feeling bored? Need your daily dose of internet humor? Here is a list of the most humorous websites on internet. No matter how low you are feeling these cool websites will bring a smile to your face or may be even make you LOL. So without much ado, let’s start our fun journey on world wide web. Right below we have a list of top 20 funniest websites. Click on the images to go to the website home page. Have Fun!
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आज करे सो अब
अक्सर हम किसी बड़े काम या बेहतरीन आइडिया को सिर्फ इसलिए यह सोचकर टालते रहते हैं कि बाद में और बेहतर तरीके से करेंगे. उदाहरण कई हैं – आप कविताएँ लिखना चाहते हैं, कई छोटे बड़े विचार भी हैं दिमाग में. पर सोच रहे हैं कि बाद में अच्छे से अरेंज करके लिखेंगे. जब समय होगा तब. जब नौकरी लग जायेगी तब. जब रिटायर हो जायेंगे तब. आप कोई किताब लिखना चाहते हैं. कोई सोशल वर्क शुरू करना चाहते हैं. बिजनेस का कोई बेहतरीन आइडिया दिमाग में है. पर लग रहा है कि अभी सही समय नहीं है यह करने के लिए. आप बाद में कभी करेंगे. तब, जब आप एकदम परफेक्ट होंगे. आपके पास बहुत सारा ज्ञान होगा. बहुत सारे पैसे होंगे, या बहुत सारा समय होगा, कोई टेंशन नहीं होगी. है न? लेकिन शायद वो ‘तब’ कभी आयेगा ही नहीं.
यह बात हम सबको पता है कि हम परफेक्ट कभी नहीं हो सकते. और परफेक्ट होने के जरुरत भी नहीं है. आप दुनिया के सफल से सफलतम व्यक्ति को ले लें. यहाँ तक कि ईश्वर के अवतारों को ले लें. उन सबमें त्रुटियाँ रही हैं. पर क्या उन कमियों ने उनकी सफलता में कोई रुकावट डाली? उन्हें उन कामों को करने से रोका जिन्हें वे अपने जीवन में करना चाहते थे?
हममें कमियाँ और समस्याएँ हमेशा रहेंगी. जो काम अभी हम कर रहे हैं उनमें भी हम पूर्ण नहीं हैं. बहुत सारी कमियां हैं. फिर भी कर रहे हैं. फिर कुछ कामों में हम ऐसे बहाने क्यों बनाने लगते हैं? अगर आप गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि आप उन्हीं कामों को बाद के लिए ज्यादा टालते हैं जो कि आप वाकई दिल से करना चाहते हैं. जिनको आप ‘काम’ नहीं समझते. ऐसी चीज समझते हैं जिसे करके आपको सिर्फ और सिर्फ खुशी मिलेगी. बोरियत या थकान का तो सवाल ही नहीं. फिर क्यों टालते हैं हम ऐसे कामों को?
शायद यह मानवीय स्वभाव है कि जो काम उसे प्रिय होते हैं, जिन्हें वह दिल से करना चाहता हैं उनमें असफलता की आशंका से भी वह घबराता है. इसलिए उन कामों को वह तभी शुरू करना चाहता है जब उसके पास उन्हें पूरा करने के लिए सारी अनुकूल परिस्थितियाँ हों. और दुनिया में अधिकाँश लोग इस कारण उन कामों को कभी कर ही नहीं पाते जिन्हें वो वाकई करना चाहते थे. चाहे वो कविता लिखना हो, पेंटिंग करना हो, संगीत सीखना हो, कोई नयी खोज करनी हो, नया बिजनेस शुरू करना हो या किसी से अपने प्रेम को व्यक्त करना हो.
किसी काम को नहीं करने से बेहतर है उसे शुरू करना और असफल हो जाना. असफलता कम से कम आपको कुछ सिखाकर जायेगी. कोशिश ही नहीं करना आपके ज्ञान और अनुभव में कोई बढ़ोतरी नहीं करेगा. अगर आप एक आर्टिकल लिखना चाहते हैं और यह सोच रहे हैं कि बाद में और बेहतर रिसर्च करके और अच्छे से लिखेंगे तो इसकी ज्यादा संभावना है कि वह आर्टिकल कभी लिखा ही नहीं जाएगा. एक अपूर्ण या त्रुटियों से भरा आर्टिकल भी ऐसे सौ आर्टिकल्स से बेहतर है जो आपके दिमाग में ही रह गए, कागज़ पर उतरे ही नहीं. ये भी याद रखें कि एक समय के बाद लोग आपकी एक सफलता को याद रखेंगे न कि आपकी सौ असफलताओं को.
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कोरियाई हिन्दी छात्र और हिन्दी इनस्क्रिप्ट टाइपिंग
मेरा एक स्टूडेंट हैं जिसने एक दो महीने पहले हिन्दी सीखनी शुरू की है. वह प्राइमरी स्कूल में छठी कक्षा का छात्र है; उम्र करीब 12-13 साल. दो महीने पहले उसकी मां का फोन आया था मेरे पास कि बच्चे की भारत और हिन्दी में बड़ी गहरी रूचि है और अब तक वह खुद से पढ़ाई करके हिन्दी अल्फाबेट सीख चुका है और हिन्दी पढ़ लिख लेता है. उसके माता-पिता चाहते थे कि वो सही तरीके से किसी इंस्ट्रक्टर के साथ हिन्दी की स्टडी करे.
हाई मोटिवेशन वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाने में मुझे मजा आता है और ऐसी स्थितियों में पैसे, समय वगैरह को ज्यादा महत्व नहीं देता. मैंने बच्चे को पढ़ाना स्वीकार कर लिया. अभी तकरीबन दो महीने हो गए इस स्टूडेंट को पढ़ाते हुए और उसकी प्रोग्रेस काफी अच्छी है. उसकी किताबों की आलमारी में भारत की संस्कृति और इतिहास वगैरह की किताबें देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. अपने इतिहास और संस्कृति में इतनी रुची तो आजकल खुद भारतीयों की भी नहीं है.
हिन्दी फिल्मों में भी इस छात्र की गहरी रूचि है. वह हर हफ्ते मुझसे हिन्दी फ़िल्में मंगवाता है और उन्हें देखता है. उसने बताया कि भारत में उसकी रूचि हिन्दी फिल्मों से ही शुरू हुई. पहले वह अपने माता-पिता के साथ आस्ट्रेलिया में रहता था. उस समय स्कूल में उसका एक दोस्त भूटान से था और वह अक्सर उसके घर जाता था. वहां अक्सर टीवी पर हिन्दी गाने या फ़िल्में चल रही होती थीं. वहीं से हिन्दी और भारत में उसकी रूचि शुरू हुई.
कुछ दिन पहले उसने मुझे महाभारत की मोटी सी किताब दिखाई जो उसने अमेजन अमेरिका से मंगाई थी क्योंकि कोरिया में महाभारत पर किताब नहीं मिल पायी. उसके बाद से अब वह अक्सर महाभारत के पात्रों और घटनाओं के बारे में मुझसे सवाल करता है. ज्यादातर का तो मैं जवाब दे पाता हूँ पर कभी-कभी मुझे भी पता नहीं होता.
कल जब उसे पढ़ाने गया तो उसने कम्प्यूटर पर हिन्दी में एक छोटी सी कहानी लिख कर रखी थी मुझे दिखाने के लिए. हालांकि कहानी में ग्रामर की गलतियां काफी थी पर उसके स्तर के हिसाब से काफी अच्छी थी. पर जिस बात ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वो यह थी कि कहानी लिखने के लिए उसने हिन्दी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड का लेआउट याद किया और टाइपिंग करनी सीखी. मुझे खुद हिन्दी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर टाइपिंग नहीं आती; गूगल इनपुट टूल का इस्तेमाल करता हूँ. खुद पर शर्म आयी और निश्चय किया कि पक्का हिन्दी टाइपिंग सीखूंगा अब. दुनिया के अधिकाँश देशों के लोग अपनी भाषाओं में कीबोर्ड का इस्तेमाल करना जानते हैं. पता नहीं भारत में क्यों हम या तो रोमन में हिन्दी लिखते हैं या फिर ट्रांसलिटरेशन टूल इस्तेमाल करते हैं.
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कोरिया में अंतिम संस्कार
आज पहली बार कोरिया में किसी अंतिम संस्कार (장례식) में गया. तीन दिन पहले मेरे प्रोफ़ेसर की माताजी का देहांत हो गया था. दो दिन तक मैं किसी काम में बहुत बिजी था तो आज तीसरे दिन शाम में जा पाया. कोरिया में अंतिम संस्कार का कार्यक्रम साधारणतः तीन दिन का होता है. लेकिन मेरे प्रोफ़ेसर की माताजी का अंतिम संस्कार कार्यक्रम चार दिन का हो रहा है. कोरियाई अंतिम संस्कार में मृत व्यक्ति के पार्थिव शरीर को 3 या 4 दिनों तक अंतिम संस्कार-गृह (장례식장) में रखा जाता है जिससे कि जानने वाले लोग आकर मृतात्मा को श्रद्धांजलि दे सकें और शान्ति के लिए प्रार्थना कर सकें. लेकिन मृत शरीर को दर्शन के लिए खुला नहीं रखा जाता है.
मृत्यु के बाद शरीर को अच्छी तरह सुगन्धित जल से नहलाया जाता है और फिर हाथ पैर के नाख़ून अच्छी तरह काट के, बालों को कंघी कर के, अच्छे कपडे पहनाकर ताबूत में रखा जाता है. फिर ताबूत के सामने एक पर्दा लगाया जाता है और परदे के आगे एक मेज पर मृत व्यक्ति की एक तस्वीर राखी जाती है. लोग आकर तस्वीर के आगे प्रार्थना करते हैं और सफ़ेद गुलदाउदी के फूल (Chrysanthemum flowers; 국화) अर्पित करते हैं. तीसरे या चौथे दिन शरीर को परिवार के पारंपरिक समाधि स्थल पर अन्य पूर्वजों के बगल में दफना दिया जाता है. लेकिन दफनाने की प्रक्रिया में सिर्फ परिवार और नजदीकी संबंधी ही शामिल होते हैं.
कोरिया में अंतिम संस्कार में जाने के लिए ड्रेस कोड भी होता है – ब्लैक फॉर्मल सूट, यहाँ तक की मोज़े भी काले होनें चाहिए. जाने वाले मृतक के परिवार को एक सफ़ेद लिफ़ाफ़े में कुछ पैसे (조의금) भी देते हैं. कोरिया में अंतिम संस्कार में बहुत पैसे खर्च होते हैं इसलिए पहले से ही दुखी परिवार को धन देकर सहायता करने का आइडिया मुझे अच्छा लगा. यह रकम एक रजिस्टर में नोट की जाती है और बाद में रकम देने वाले के घर में शादी-व्याह या कोइ अन्य समारोह होने पर उसी अनुपात में रकम गिफ्ट की जाती है. मृतक के परिवार वाले भी काले कपड़े पहनते हैं. साधारण तौर पर मृतक का बड़ा बेटा सांग्जु (Sangju; 상주) की भूमिका अदा करता है; यानि सारे रीति रिवाजों को मुख्य रूप से वही निभाता है. मृतक के परिवार वाले अपनी वाहों पर एक सफ़ेद रिबन बांधते हैं जिससे परिवार वालों को बाकी लोगों से अलग पहचाना जा सके.
जब मैं अंतिम संस्कार-गृह (장례식장) में पहुंचा तो मुख्य हॉल में एक इलेक्ट्रोनिक डिस्प्ले बोर्ड लगा था जिसपर उस दिन जन लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा था उनकी लिस्ट आ रही थी. वहीं बगल में एक मेज पर सफ़ेद लिफाफे और कलम रखी थी. मैंने एक लिफ़ाफ़े में पैसे रखे और उस हौल की और गया जहाँ मेरे प्रोफ़ेसर साहब की माताजी का संस्कार हो रहा था.
जहां पार्थिव शरीर रखा होता है उस कक्ष के अन्दर और बाहर पारंपरिक कोरियन कैलीग्राफी में मृतक के लिए प्रार्थना और अच्छी बातें लिखी होती हैं. उसके अलावा संबंधी और जानने वाले लोग फूलों के बहुत बड़े बड़े गुलदस्ते और बैनर भी रख जाते हैं. चूँकि मेरे प्रोफ़ेसर कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं इसलिए उनके जानने वालों की संख्या भी उतनी ही ज्यादा है. इस कारण गुलदस्तों और बैनरों की लाइन लगी थी. कक्ष के बाहर एक डेस्क पर दो लोग बैठे थे और एक रजिस्टर रखा था. मैंने वहां जाकर पैसे का लिफाफा जमा किया और रजिस्टर में अपने दस्तखत कर दिए.
उसके बाद मैं जूते उतार कर हॉल के अन्दर गया. दरवाजे पर ही एक लड़की ने मुझे सफ़ेद गुलदाउदी फूलों का एक गुच्छा हाथ में दे दिया. सामने मेज पर माताजी की तस्वीर रखी थी और उसके दायीं और मेरे प्रोफ़ेसर यानी मृतक के सबसे बड़े पुत्र खड़े थे. सबसे पहले मैंने मेज पर रखी माताजी तस्वीर के आगे फूल चढ़ाए, झुक कर प्रणाम किया और खड़े होकर दो मिनट तक प्रार्थना की. फिर दायीं और मुड़कर अपने गुरूजी को झुक कर प्रणाम किया. वहाँ बोलना कुछ नहीं होता है. बस एक सम्मान और सांत्वना भरी चुप्पी काफी होती है. गुरूजी ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथ में लेकर कर एक तरह से आने के लिए आभार प्रकट किया. फिर कहा कि खाना खाकर जाना.
वहीं बगल में भोजन करने की जगह थी जहाँ आने वाले लोग प्रार्थना करने और सांत्वना देने के बाद जाकर भोजन कर रहे थे. यह भोजन भी लगातार 3-4 दिन तक चलता रहता है. मैंने जाकर अपने डिपार्टमेंट के कुछ और छात्रों के साथ हल्का सा खाना खाया फिर वहां लोगों को खाना खिलाने में मदद करने लगा. डिपार्टमेंट के बहुत सारे छात्र-छात्राएं वहां काम में लगे थे. चूँकि गुरूजी का माताजी की उम्र भी काफी थी और एक भरी-पूरी ज़िंदगी जीकर अच्छे से गुजरी थीं इसलिए वहां पर ऐसा कोई ग़मगीन माहौल नहीं था. लोग अच्छे से हँसते गपशप करते हुए खाना खा रहे थे.
मेरा सौभाग्य रहा है कि मेरे गुरुओं का मुझपर हमेशा स्नेह रहता है. वर्तमान प्रोफ़ेसर साहब का मुझपर कुछ विशेष प्रेम रहता है. उन्हें पता है कि बीफ-पोर्क वगैरह न खाने के कारण मुझे कोरिया में खाने की बड़ी समस्या है. इसलिए जब भी मिलते हैं तो ये जरूर पूछते हैं कि खाना वगैरह ठीक से खा पी रहे हो न? तबियत-वगैरह ठीक है न? आज भी जब मैं वहां काम में लगा था तो वे अपनी जगह से निकल कर भोजन वाली जगह पर आये और मुझे बुला कर पूछा कि खाना ठीक से खाया या नहीं; तुम्हारे खाने लायक तो ज्यादा कुछ होगा भी नहीं. मैंने बोला, नहीं सर, भर पेट खा लिया., बहुत कुछ था खाने को. फिर भी वो वहां किचेन वाले को बोल के गए कि इसको अलग से फ्रूट सलाद वगैरह बनाकर दो, ये मीट नहीं खाता है. ये अलग बात है कि मैंने बाद में कुछ खाया नहीं पर उनके स्नेह से मन अभिभूत हो गया.
अगर आप कोरिया में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के बारे में और विस्तार से जानना चाहते हैं तो इन लिंक्स पर जा सकते हैं:
http://www.seoulsite.com/survival-faq/a-korean-funeral/http://askakorean.blogspot.kr/2008/02/dear-korean-i-just-found-out-that-my.html
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जंगल, आग और हम
पिछले साल जब मैं उत्तराखंड गया था तो रात में टहलते हुए देखा कि दूर पहाड़ों पर करीब पांच सौ मीटर का क्षेत्र रोशनी से जगमग कर रहा है। पहले लगा कि कोई मंदिर वगैरह होगा। फिर लगा कि इतना बड़ा मंदिर होता तो मुझे पता होता और फिर इतने ऊँचे पहाड़ों में इतनी बिजली कौन बर्बाद करेगा। सोचा कि सुबह होटल वाले से पूछुंगा। अगले दिन जब ध्यान से देखा तो पता चला कि पहाड़ों में उतने क्षेत्र में आग लगी हुई थी जो फैलती ही जा रही थी। हरे भरे पहाड़ से काला धुंआ उठ रहा था। मैंने बिलकुल इमरजेंसी टाइप से होटल वाले को सूचना दी। उन्होंने आराम से अपने कुत्ते को नहलाते हुए कहा “हाँ पता है, उधर आग लगी है। अपने आप बुझ जाती है ये.. 10-15 दिन में।” “10-15 दिन में???” मैं शॉक्ड था। शायद ‘आग लगना’ शब्द के मायने हमारे और उनके लिए अलग थे। मैंने होटल वालों, टैक्सी वालों कई लोगों से बोला कि कोई जंगल या पर्यावरण विभाग वगैरह नहीं है क्या यहाँ जहाँ फ़ोन करके आग के बारे में बताया जा सके। जिससे भी बोलता था वो मुझे एलियन टाइप से देखता था। हरे भरे ख़ूबसूरत पहाड़ों को जलते देखना मेरे लिए बहुत कष्टकर था। मेरे लिए प्राकृतिक सम्पदा का नष्ट होना किसी भी बड़े मंदिर-मस्जिद-धरोहर के ढहने से ज्यादा बड़ी त्रासदी है। अभी जब उत्तराखंड और हिमाचल के जंगलों में भयंकर आग की खबर पढ़ रहा हूँ तो लग रहा है कि शायद हमारे जैसे लोग ऐसी ख़ूबसूरत जगहें डिज़र्व ही नहीं करते। एक दिन हम हिमाचल और उत्तराखंड को भी नोएडा और गुड़गांव बना देंगे।
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कोरियन सेवॉल जहाज दुर्घटना
साढ़े तीन साल तक यहाँ रहने के दौरान मैंने इस देश को इतने दुःख और अवसाद में डूबे हुए कभी नहीं देखा. कोरियन लोग दुनिया के सबसे मेहनती और जीवट लोगों में से हैं. जब पूरी दुनिया के लोग नॉर्थ कोरिया के अटैक को लेकर टेंशन में थे तब कोरिया में कोई इसकी बात भी नहीं करता था. लोग बिना किसी चिंता के अपने-अपने काम में लगे हुए थे.
लेकिन पिछले 2 दिनों में जितने भी कोरियन लोगों से मेरी बात हुई सब के सब ने ये बताया कि वे इस दुर्घटना से बहुत परेशान हैं. शायद एक कारण यह भी है कि डूबे जहाज में अधिकतर हाई-स्कूल के बच्चे थे. कोरिया एक ऐसा देश है जहाँ युवा आबादी बड़ी तेजी से कम हो रही है और बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में एक साथ इतने बच्चों का दुर्घटनाग्रस्त होना सिर्फ उनके परिवारों के लिए नहीं पूरे देश के लिए दुख की घटना है.
मलेशियन फ्लाईट और अभी सेवॉल शिप के साथ हुई दुर्घटना से यह अहसास होता है कि हम तकनीकी रूप से अभी कितना पीछे हैं और प्रकृति के आगे कितने विवश. पीड़ितों और उनके परिवारवालों के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है. -
Jean Boulangerie Bakery in Seoul
There was this small bakery named Jean Boulangerie near our university in Seoul which made delicious bread, cookies and sandwiches. The shop was already very popular in the neighborhood but recently a Korean TV channel did a story on it and after that customers from all over Seoul started pouring in to this small bakery. As the shop was very small with limited resources, supply and staff, it couldn’t meet the sudden increase in the demand. They had to close the shop for a month for renovation and scaling up their whole system. People kept pouring in to the shop to be welcomed by a ‘Will Reopen Soon’ banner.
Today the shop opened after renovation and within a few hours there was big queue of people lining up outside the shop. I hope they could maintain their quality with the huge increase in the demand. Media matters, man! 🙂
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Politics – Indians’ favorite topic of Conversation
Indians love to talk about politics. Especially Indian men. From university professors and engineers on Facebook to the illiterate farmers in some rural part of the country – discussing and debating politics is the favorite past time of Indians.
Every Indian man seems qualified enough to sit in a TV channel discussion as a political commentator. Common people talk about political parties, politicians, national issues and electoral factors with so much confidence and conviction that even the experts on political issues would sound shallow before them.
Indians are argumentative by nature. They love to argue. And what other topic can trigger a heated debate than politics? On an average day, 60-70% of posts on my Facebook timeline are somehow political. And these days, in the season of parliamentary general elections, around 90% of the posts from my Indian friends are related to politics.
During my 3 and half years in Korea, I have observed that Korean people love to talk about personal life and food. If you observe the conversation between two or more Koreans, whether on social media or face to face, you will find that they are talking either about personal stuff like family, relationships, looks, health etc. or about food. Korean people are crazy about food. It’s very common to find a group of people discussing which neighborhood restaurants and dishes are amazing or what they will be eating next time they meet or something like that. When they are at the eating table, a great part of the conversation is focused on the food, taste and other aspects of it. On the other hand, it’s very common to find groups of Indian people discussing who is going to win the next elections over dinner.