पिछले साल जब मैं उत्तराखंड गया था तो रात में टहलते हुए देखा कि दूर पहाड़ों पर करीब पांच सौ मीटर का क्षेत्र रोशनी से जगमग कर रहा है। पहले लगा कि कोई मंदिर वगैरह होगा। फिर लगा कि इतना बड़ा मंदिर होता तो मुझे पता होता और फिर इतने ऊँचे पहाड़ों में इतनी बिजली कौन बर्बाद करेगा। सोचा कि सुबह होटल वाले से पूछुंगा। अगले दिन जब ध्यान से देखा तो पता चला कि पहाड़ों में उतने क्षेत्र में आग लगी हुई थी जो फैलती ही जा रही थी। हरे भरे पहाड़ से काला धुंआ उठ रहा था। मैंने बिलकुल इमरजेंसी टाइप से होटल वाले को सूचना दी। उन्होंने आराम से अपने कुत्ते को नहलाते हुए कहा “हाँ पता है, उधर आग लगी है। अपने आप बुझ जाती है ये.. 10-15 दिन में।” “10-15 दिन में???” मैं शॉक्ड था। शायद ‘आग लगना’ शब्द के मायने हमारे और उनके लिए अलग थे। मैंने होटल वालों, टैक्सी वालों कई लोगों से बोला कि कोई जंगल या पर्यावरण विभाग वगैरह नहीं है क्या यहाँ जहाँ फ़ोन करके आग के बारे में बताया जा सके। जिससे भी बोलता था वो मुझे एलियन टाइप से देखता था। हरे भरे ख़ूबसूरत पहाड़ों को जलते देखना मेरे लिए बहुत कष्टकर था। मेरे लिए प्राकृतिक सम्पदा का नष्ट होना किसी भी बड़े मंदिर-मस्जिद-धरोहर के ढहने से ज्यादा बड़ी त्रासदी है। अभी जब उत्तराखंड और हिमाचल के जंगलों में भयंकर आग की खबर पढ़ रहा हूँ तो लग रहा है कि शायद हमारे जैसे लोग ऐसी ख़ूबसूरत जगहें डिज़र्व ही नहीं करते। एक दिन हम हिमाचल और उत्तराखंड को भी नोएडा और गुड़गांव बना देंगे।
जंगल, आग और हम

Comments
7 responses to “जंगल, आग और हम”
-
आग लगाई जाती है जंगल में किये गये पापों को भस्म करने के लिये ।
-
Please is baat ko saaf saf kahiye.
-
-
एक तो वैसे ही धरती वृक्षों से रहित होती जा रही है ,ऊपर से वनो का इतने लंबे समय तक भयावह रूप से जलना -परिणाम सोच कर हृदय काँप जाता है -ग्लेशियर पिघलेंगे तो नदियाों के जल पर प्रभाव पड़ेगा -कितनी भारी क्षति है पर्यावरण की ….!
-
जी, बहुत गंभीर स्थिति है.
-
-
@sushil kumar joshi #Sushil ji aapka kahne ka saaf matlab batyiye please!
-
क्षमा करेंगे देर से उत्तर देने के लिये । जंगल में किये गये भ्रष्टाचार से मतलब था । पेड़ काट कर बेच देने के बाद पकड़े जाने के डर को मिटाने के लिये आग लगा दी जाती है कई जगह । सबूत मिट जाते हैं ।
-
-
good web
Please Leave your Comment