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  • मेरी कैरियर से जुड़े अहम फैसले – बेवकूफियों की सीरीज

    मेरी कैरियर से जुड़े अहम फैसले – बेवकूफियों की सीरीज

    Career Decisions right or wrong1. बिहार में सरकारी नौकरी की जितनी वैल्यू है उतनी किसी और प्रोफेशन की नहीं. 2007 में मुझे बैंक की नौकरी हुई थी. और ठीक उसी समय जेएनयू का एंट्रेस टेस्ट भी हो गया था. मैंने नौकरी की जगह जेएनयू में पढ़ने का ऑप्शन चुना. मेरे जानने वालों के अनुसार यह मेरी बहुत बड़ी बेवकूफी थी.
    2. जेएनयू से ग्रेजुएशन के बाद मेरे बहुत सारे करीबी लोगों का कहना था कि मुझे सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी चाहिए पर मैंने आगे की पढ़ाई के लिए कोरिया जाने का निर्णय लिया. यह लोगों के अनुसार मेरी बेवकूफी थी. ऐसा नहीं कि मैं तैयारी करता तो हो ही जाता पर लोगों का कहना था कि मुझे कम से कम अटेम्प्ट करना चाहिए था.
    3. कोरिया में पढ़ाई पूरी होने के बाद मेरे सुपरवाइज़र और एक और प्रोफ़ेसर ने कहा कि आगे यहीं रिसर्च करो, स्कॉलरशिप के लिए रिकमेंडेशन हम लिख देंगे. पर मैंने यह कहकर माफी मांग ली कि सर अभी भारत वापस जाकर कुछ करना चाहता हूँ. बाद में अगर कोरिया आना ही पड़ा तो जरूर आपको बताउंगा. लोगों के अनुसार लौटकर यहाँ आना मेरा बेवकूफी वाला निर्णय था.
    4. कोरिया में कई अच्छी कंपनियों में ऊँचे पदों पर बैठे कुछ लोगों से संपर्क हुआ था और उन्होंने मुझे बोला कि यहाँ जॉब करनी हो तो बताना. पर मैं डिग्री पूरी करके सीधा वापस आ गया. अधिकतर लोगों का कहना था कि यहाँ क्या करने आये, वहीं जॉब करना चाहिए था. ज्यादा नहीं तो दो-चार साल काम करके कुछ पैसे ही जमा कर लेते फिर आते.
    5. भारत लौटने के बाद भी पिछले एक साल में कम से कम 4-5 इतने अच्छे जॉब ऑफर्स आये जिन्हें मना करना बहुत मुश्किल था. लेकिन मैंने अपनी पसंद का काम करने के लिए थोड़ा और स्ट्रगल करने का डिसीजन लिया. कई लोग अब भी कहते हैं कि मैं बेवकूफी कर रहा हूँ.

    कुल मिलाकर लोगों के अनुसार मैंने पिछले कुछ सालों में बेवकूफियों की पूरी सीरीज बनायी है. 🙂 अब ये बेवकूफियां थीं या समझदारी यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन दोनों ही स्थितियों में मैं खुद से संतुष्ट रहूँगा कि मैंने भेड़चाल और लोगों की ओपिनियन के हिसाब से ज़िंदगी के अहम फैसले नहीं लिए. अगर मैं पूरी तरह असफल भी रहा तो भी मेरे पास लोगों को अपने अनुभव से बताने को काफी कुछ रहेगा. वैसे भी मेरे जैसे लोगों के लिए जिन्होंने शुरूआत ज़ीरो से की है, खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए पूरा आसमान. 🙂

  • एक साल में एमबीए और दस मिलियन डॉलर

    एक साल में एमबीए और दस मिलियन डॉलर

    spam mail cartoonगर्मी की छुट्टी चल रही है आजकल. डेली रूटीन का पूरा मामला तो अपने देश के सिस्टम जैसा हो गया है. कब सोना है कब खाना है सब मन की मर्जी पर. खैर ऐसे दिनों का भी आनंद लेना चाहिए फिर पता नहीं ऐसा वक्त मिले या नहीं. तो आज सोकर उठे 11 बजे. जल्दी सोकर उठने पर अच्छा लगता है. उठते ही हाथ फोन की तरफ ऐसे जाता है जैसे दिमाग में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम किया हुआ हो कि पहला काम यही करना है.  उसके बाद फेसबुक और जीमेल वगैरह बिस्तर पर लेटे-लेटे ही चेक किया.

    जीमेल पर पहला मेल एक मिलियन डॉलर की लौटरी का ई-मेल था और दूसरा पता नहीं शायद दस मिलियन डॉलर का ऑफर था. सऊदी अरब के कोई भारी शेख थे जो अपने पीछे अथाह दौलत छोड़ गए थे. लेकिन उनकी बीवी को वो धन निकालने के लिए किसी दूसरे देश वाले की जरुरत थी और इस महान काम के लिए उन्होंने भारत की सवा अरब की आबादी में से मुझे चुना था और मुझे धन का आधा हिस्सा भी दे रही थी. कौन कहता है कि दुनिया में भले लोग नहीं हैं. सीना चौड़ा हो जाता है ऐसे मेल देख कर. खैर उस को स्पैम मार्क कर डिलीट कर दिया. क्योंकि अपन दस मिलियन का करेंगे भी क्या? किसी और जरूरतमंद को मिल जाए शेख साहब का धन. हम भी कोई कम दानी थोड़े हैं.

    उसके बाद 1 साल में एमबीए कराने वाली मणिपुर की किसी बड़ी यूनिवर्सिटी ने मुझे एक हफ्ते में एडमिशन लेने पर भारी डिस्काउंट ऑफर किया था. यह कंपनी.. सॉरी… यूनिवर्सिटी बता रही थी कि यह ISO 9001:2008 और पता नहीं किस-किस टाइप से प्रमाणित है और मौक़ा दिए जाने पर एक साल में मेरा कैरियर बना सकती है. एक बार तो मन किया कि कोरिया से झोला समेट के मणिपुर ही निकल लें. लेकिन फिर लगा इतनी बड़ी और अच्छी यूनिवर्सिटी है.. क्यों सीट खराब करें.. किसी दूसरे गरीब-जरूरतमंद को सीट मिल जायेगी.

    चौथा मेल औरकुट की स्पेसीज की एक नई वेबसाईट ने आज दसवीं बार भेजा था कि वहाँ मेरा एक गहरा मित्र मुझे फ्रेंड लिस्ट में ऐड करने को बेचैन है और मेरा इंतज़ार कर रहा है. नौ बार मेल को स्पैम में डालने के बाद भी यह वेबसाईट मुझे मेरे बिछड़े मित्र से मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. अपने काम के प्रति उसकी कटिबद्धता को प्रणाम. हर वेबसाईट को ऐसी ही सर्विस देनी चाहिए.

    फिर एक शादी-फ्रेंडशिप टाइप साईट की मेल थी कि वहाँ फलाना-फलाना सुन्दर लड़कियाँ आँखें बिछाए मेरा इंतज़ार कर रही हैं और मुझे तुरंत वहाँ रजिस्टर करके अपने बिजी शेड्यूल में से थोड़ा समय उन्हें भी देना चाहिए. प्रमाण के लिए साईट वालों ने एक-दो जोड़ों की हँसती हुई तस्वीर भी चिपकाई थी जो उनके अनुसार, उनकी साईट के कारण आज शादी-शुदा थे. मन किया कि उस मेल को राहुल गाँधी और सलमान खान को फारवर्ड कर दूँ पर फिर रहने दिया.

    इन जरूरी और काम की ई-मेल्स के बाद अंत में एक फालतू की मेल थी सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी (बोले तो अपनी यूनिवर्सिटी)की लाइब्रेरी से कि जो एक झोला किताब आप पिछले महीने ले गए हैं और जिन्हें अबतक उलट कर भी नहीं देखा है उन्हें कृपया तीन दिन के अंदर लौटा दें नहीं तो उसपर जुर्माना कस दिया जायेगा. हद है.. यूनिवर्सिटी किताब ऐसे वापस मांग रही है जैसे लोन वसूली कर रही हो. खैर वैसे भी कौन सा उनको पढ़ के मैं बाबा बन जाता. मैं लाइब्रेरी में लौटा के आऊंगा तो मेरे जैसा कोई दूसरा ढोके ले जाएगा. लाइब्रेरी की मोटी किताबें ढोने के लिए ही होती हैं, पढ़ने के लिए नहीं.

    फेसबुक पर अभी तक फ्रेंडशिप डे का ही रायता फैला हुआ था. जैसे दिवाली के अगले दिन हर जगह पटाखों के छिलके, टूटी-जाली मोमबत्तियाँ और माचिस बिखरी हुई मिलती हैं वैसे ही फेसबुक वॉल पर फ्रेंडशिप डे के कॉपी-पेस्टेड फ्रेंडशिप शेरो-शायरी, फोटो, कार्ड्स वगैरह बिखरे हुए थे. कोई उनको साफ़ भी नहीं करता. फेसबुक गाज़ियाबाद के कचड़ा क्षेत्र की तरह है. उसमें कचरे पर कचरा जमा होता जाता है. पुराने कचरे को हटाना जरूरी नहीं. और कभी पुराने कचरे से कुछ ढूँढना पड़ जाए तो…

    आज बीसीबाजी यहीं तक.. हैव अ गुड डे.. 🙂