गर्मी की छुट्टी चल रही है आजकल. डेली रूटीन का पूरा मामला तो अपने देश के सिस्टम जैसा हो गया है. कब सोना है कब खाना है सब मन की मर्जी पर. खैर ऐसे दिनों का भी आनंद लेना चाहिए फिर पता नहीं ऐसा वक्त मिले या नहीं. तो आज सोकर उठे 11 बजे. जल्दी सोकर उठने पर अच्छा लगता है. उठते ही हाथ फोन की तरफ ऐसे जाता है जैसे दिमाग में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम किया हुआ हो कि पहला काम यही करना है. उसके बाद फेसबुक और जीमेल वगैरह बिस्तर पर लेटे-लेटे ही चेक किया.
जीमेल पर पहला मेल एक मिलियन डॉलर की लौटरी का ई-मेल था और दूसरा पता नहीं शायद दस मिलियन डॉलर का ऑफर था. सऊदी अरब के कोई भारी शेख थे जो अपने पीछे अथाह दौलत छोड़ गए थे. लेकिन उनकी बीवी को वो धन निकालने के लिए किसी दूसरे देश वाले की जरुरत थी और इस महान काम के लिए उन्होंने भारत की सवा अरब की आबादी में से मुझे चुना था और मुझे धन का आधा हिस्सा भी दे रही थी. कौन कहता है कि दुनिया में भले लोग नहीं हैं. सीना चौड़ा हो जाता है ऐसे मेल देख कर. खैर उस को स्पैम मार्क कर डिलीट कर दिया. क्योंकि अपन दस मिलियन का करेंगे भी क्या? किसी और जरूरतमंद को मिल जाए शेख साहब का धन. हम भी कोई कम दानी थोड़े हैं.
उसके बाद 1 साल में एमबीए कराने वाली मणिपुर की किसी बड़ी यूनिवर्सिटी ने मुझे एक हफ्ते में एडमिशन लेने पर भारी डिस्काउंट ऑफर किया था. यह कंपनी.. सॉरी… यूनिवर्सिटी बता रही थी कि यह ISO 9001:2008 और पता नहीं किस-किस टाइप से प्रमाणित है और मौक़ा दिए जाने पर एक साल में मेरा कैरियर बना सकती है. एक बार तो मन किया कि कोरिया से झोला समेट के मणिपुर ही निकल लें. लेकिन फिर लगा इतनी बड़ी और अच्छी यूनिवर्सिटी है.. क्यों सीट खराब करें.. किसी दूसरे गरीब-जरूरतमंद को सीट मिल जायेगी.
चौथा मेल औरकुट की स्पेसीज की एक नई वेबसाईट ने आज दसवीं बार भेजा था कि वहाँ मेरा एक गहरा मित्र मुझे फ्रेंड लिस्ट में ऐड करने को बेचैन है और मेरा इंतज़ार कर रहा है. नौ बार मेल को स्पैम में डालने के बाद भी यह वेबसाईट मुझे मेरे बिछड़े मित्र से मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. अपने काम के प्रति उसकी कटिबद्धता को प्रणाम. हर वेबसाईट को ऐसी ही सर्विस देनी चाहिए.
फिर एक शादी-फ्रेंडशिप टाइप साईट की मेल थी कि वहाँ फलाना-फलाना सुन्दर लड़कियाँ आँखें बिछाए मेरा इंतज़ार कर रही हैं और मुझे तुरंत वहाँ रजिस्टर करके अपने बिजी शेड्यूल में से थोड़ा समय उन्हें भी देना चाहिए. प्रमाण के लिए साईट वालों ने एक-दो जोड़ों की हँसती हुई तस्वीर भी चिपकाई थी जो उनके अनुसार, उनकी साईट के कारण आज शादी-शुदा थे. मन किया कि उस मेल को राहुल गाँधी और सलमान खान को फारवर्ड कर दूँ पर फिर रहने दिया.
इन जरूरी और काम की ई-मेल्स के बाद अंत में एक फालतू की मेल थी सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी (बोले तो अपनी यूनिवर्सिटी)की लाइब्रेरी से कि जो एक झोला किताब आप पिछले महीने ले गए हैं और जिन्हें अबतक उलट कर भी नहीं देखा है उन्हें कृपया तीन दिन के अंदर लौटा दें नहीं तो उसपर जुर्माना कस दिया जायेगा. हद है.. यूनिवर्सिटी किताब ऐसे वापस मांग रही है जैसे लोन वसूली कर रही हो. खैर वैसे भी कौन सा उनको पढ़ के मैं बाबा बन जाता. मैं लाइब्रेरी में लौटा के आऊंगा तो मेरे जैसा कोई दूसरा ढोके ले जाएगा. लाइब्रेरी की मोटी किताबें ढोने के लिए ही होती हैं, पढ़ने के लिए नहीं.
फेसबुक पर अभी तक फ्रेंडशिप डे का ही रायता फैला हुआ था. जैसे दिवाली के अगले दिन हर जगह पटाखों के छिलके, टूटी-जाली मोमबत्तियाँ और माचिस बिखरी हुई मिलती हैं वैसे ही फेसबुक वॉल पर फ्रेंडशिप डे के कॉपी-पेस्टेड फ्रेंडशिप शेरो-शायरी, फोटो, कार्ड्स वगैरह बिखरे हुए थे. कोई उनको साफ़ भी नहीं करता. फेसबुक गाज़ियाबाद के कचड़ा क्षेत्र की तरह है. उसमें कचरे पर कचरा जमा होता जाता है. पुराने कचरे को हटाना जरूरी नहीं. और कभी पुराने कचरे से कुछ ढूँढना पड़ जाए तो…
आज बीसीबाजी यहीं तक.. हैव अ गुड डे.. 🙂
raviratlami says
शानदार व्यंग्य. आधुनिक. मौलिक. मजा आया
Deepak Sasmal says
Amazing adbhut yakin nahi hota koi videsh mai hokar bhi HINDI likhta ho… Good job sir ji