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लैंगुएज स्टडी करने का बेस्ट तरीका

January 2, 2014 By Satish Chandra Satyarthi 5 Comments

Best Language Learning Methodमेरे पास मेरे ब्लॉग रीडर्स और कभी-कभी जेएनयू, डीयू और अन्य यूनिवर्सिटीज में फॉरेन लैंगुएज पढ़ रहे जूनियर्स के ऐसे मैसेज अक्सर आते हैं कि लैंगुएज कैसे इम्प्रूव करें, Vocabulary कैसे याद करें, Speaking कैसे इम्प्रूव करें वगैरह-वगैरह. लोग जानना चाहते हैं कि लैंगुएज स्टडी करने का बेस्ट मेथड क्या है. लैंगुएज एक्सपर्ट्स, टीचर्स, वेबसाइट्स वगैरह के पास भी सबसे ज्यादा आने वाला क्वेश्चन यही होता है कि किसी विदेशी भाषा को सीखने का बेस्ट तरीका क्या है? आज इस पोस्ट में मैं फॉरेन लैंगुएज स्टडी करने का बेस्ट मेथड शेयर करना चाहूंगा. ऐसा नहीं है कि मेरी खुद कई विदेशी भाषाओं में फ़्लूएंट हूँ और कोई सीक्रेट शेयर करने जा रहा हूँ. चूँकि (कोरियन) लैंगुएज एजुकेशन मेरा मेजर सब्जेक्ट है तो जो थोड़ा बहुत लैंगुएज लर्निंग और टीचिंग के बारे में सीखा है उसके आधार पर मैं बताना चाहूँगा कि लैंगुएज सीखने का सबसे अच्छा तरीका क्या है.

तो सबसे पहले जो बात मैं कहना चाहता हूँ वो ये है कि किसी भी भाषा को सीखने का कोई एक बेस्ट मेथड नहीं होता. इसलिए ये बात भूल जाएँ कि अगर आपका कोई दोस्त किसी लैंगुएज में आपसे बहुत फ़्लूएंट है तो उसका कोई बेस्ट सीक्रेट स्टडी मेथड होगा और वो मेथड हाथ लगते ही आप भी उसके जैसी फर्राटेदार लैंगुएज बोलने लगेंगे. जिस तरीके से आपका दोस्त स्टडी करता है, जरूरी नहीं कि वो आपको भी सूट करे. हर लर्नर की अपनी जरूरतें होती हैं और चीजों की समझने और याद रखने के अलग तरीके होते हैं. इसलिए बेहतर यही है कि आप अलग-अलग तरीकों से स्टडी करके देखें और फिर अपना खुद का बेस्ट मेथड निकालें जो आपको सबसे बेहतर सूट करता हो.

उदाहरण के लिए, कई स्टूडेंट वर्ड्स और उनकी मीनिंग की बड़ी बड़ी लिस्ट बनाकर उन्हें दुहरा-दुहराकर रिपीट करते हैं. लैंगुएज एजुकेशन से जुड़ी अधिकाँश रिसर्च कहती हैं कि वोकैब्युलरी याद करने का यह सही तरीका नहीं है. लेकिन कई लंगुएज लर्नर्स को यही तरीका बेस्ट सूट करता है तो उन्हें रिसर्च या किसी और चीज की परवाह करने की जरूरत नहीं है. वहीं दुसरे स्टूडेंट्स फ्लैशकार्ड बनाकर, चित्रों की मदद से या एक्जाम्पल सेन्टेंस के जरिये शब्दों को याद करना पसंद करते हैं. तो उनके लिए लिस्ट वाला तरीका सही नहीं होगा भले ही कोई स्कॉलर या प्रोफ़ेसर उन्हें ये तरीका रिकमेंड कर रहा हो.

कई छात्र किताबों को पढ़ते हुए ग्रामर और शब्दों की लिस्ट बनाते हैं, उन्हें याद करते हैं, सेन्टेंस बनाकर उनकी प्रैक्टिस करते हैं. कई स्टूडेंट्स को यह तरीका बोरिंग लगता है. वे कुछ मीनिंगफुल, जैसे कहानी/ ब्लॉग वगैरह, पढ़ते हुए उनमें आने वाले ग्रामर और वर्ड्स की स्टडी करते हैं. कई लोगों को यह तरीका भी अच्छा नहीं लगता; वे उस भाषा के गाने सुनते हुए, ड्रामा-मूवी देखते हुए लैंगुएज जल्दी सीखते हैं. मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ जिन्होंने सिर्फ छह महीने और एक साल में ड्रामा और मूवीज के जरिये लैंगुएज सीखी है और वे उस लैंगुएज के ग्रेजुएट्स से ज्यादा बेहतर बोलते हैं. यहाँ एक चीज और जोड़ना चाहूंगा कि ऐसा अक्सर देखा गया है कि जो स्टूडेंट्स ड्रामा और मूवी देखते हुए हैं लैंगुएज सीखते हैं उनकी स्पीकिंग और लिसनिंग अबिलिटी तो बहुत अच्छी होती है लेकिन अक्सर वो लिखने में कमजोर होते हैं. वे किसी विषय पर coherent और cohesive टेक्स्ट नहीं लिख पाते क्योंकि बोलने की और लिखने की भाषा अलग-अलग होती है. वे स्पेलिंग की भी बहुत गलतियाँ करते हैं. वहीं दूसरी ओर जो लोग किताबों और ग्रामर-वोकैब्युलरी लिस्ट के जरिये लैंगुएज सीखते हैं उनकी राइटिंग ज्यादा अच्छी होती है. स्पीकिंग में भी वो ग्रामैटिकली ज्यादा सही बोलते हैं लेकिन उनकी भाषा में फ्लूएंसी और नेचुरल टोन की कमी होती है. इसलिए दोनों तरीकों का सही कॉम्बिनेशन जरूरी है.

आप जो विदेशी भाषा सीख रहे हैं अगर आपके पास उस देश में रहने का अवसर नहीं है तो उस भाषा में फ्लूएंसी और नेचुरल इंटोनेशन हासिल करना और मुश्किल हो जाता है. क्योंकि भाषा सुनकर सीखी जाती है. किताबें आपको किसी ग्रामर पैटर्न या वर्ड का मतलब बता सकती हैं लेकिन नेचुरल और रियल लाइफ सिचुएशन में कोई सेन्टेंस कब और कैसे यूज होगा यह आपको उस कल्चर में रहकर ही समझ आ सकता है. लेकिन इंटरनेट ने आज पूरी दुनिया को कनेक्ट कर दिया है. बिना उस देश में गए हुए भी आप किसी भाषा के रियल लाइफ यूज,  इंटोनेशन वगैरह को समझ सकते हैं. मूवी और ड्रामा तो एक जरिया है ही साथ ही यूट्यूब आजकल लैंगुएज सीखने वालों के लिए बहुत बड़ा रिसोर्स है. सर्च करने पर आपको हर भाषा में अलग-अलग रियल लाइफ सिचुएशंस के वीडियोज मिल जायेंगे और उनको समझाने वाले लैंगुएज लेसंस भी.  कई लोग उस देश में रहते हुए भी उपलब्ध रिसोर्सेज का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते और लैंगुएज में कमजोर रह जाते हैं जबकि दूसरी ओर आपको ऐसे कई लोग मिलेंगे जो इंटरनेट पर उपलब्ध ऑडियो, वीडियो, ब्लॉग, वेबसाईट वगैरह की मदद से लैंगुएज में प्रोफ़िशिएंट हो जाते हैं.

यहाँ पर मोटिवेशन का फैक्टर बहुत ही इम्पोर्टेंट हैं. आपका लैंगुएज एप्टीट्यूड कितना ही अच्छा हो, आप किसी भी तरीके से स्टडी कर रहे हों; अगर आपके अन्दर उस लैंगुएज और उस देश के कल्चर को समझने के प्रति मोटिवेशन नहीं है तो आपके लिए एडवांस्ड लेवल प्रोफ़िशिएन्सी हासिल करना मुश्किल होगा. यह मोटिवेशन जॉब के लिए हो सकता है, अच्छी स्कॉलरशिप के लिए या फिर उस देश के लोगों, संस्कृति, कला वगैरह में वास्तविक रूचि के कारण. मैं ऐसे कुछ लोगों से मिला हूँ जिन्होंने सिर्फ K-POP में गहरी रुचि के कारण कोरियन लैंगुएज को खुद से सीखना शुरू किया और बिना किसी स्कूल या इंस्टीट्यूट गए बेहतरीन कोरियन बोलते हैं.

आज इंटरनेट पर लैंगुएज सीखने में हेल्प करने वाली बहुत सारी वेबसाइट्स हैं, कम्यूनिटीज हैं और फिर सोशल मीडिया है जिन पर लोग स्टडी रिसोर्सेज, प्रोब्लम्स और सोल्यूशंस शेयर करते हैं. कुछ अच्छी वेबसाइट्स जो मुझे याद आ रही हैं वो हैं – ANKI, MEMRISE और DUOLINGO.  अपने टॉपिक गाइड ब्लॉग पर मैंने कोरियन लैंगुएज सीखने के लिए कुछ बेस्ट ऑनलाइन रिसोर्सेज भी शेयर किये हैं.  सोशल मीडिया के जरिये आसानी से आप किसी भी भाषा के नेटिव स्पीकर्स से जुड़ सकते हैं उनसे कम्यूनिकेट करते हुए लैंगुएज की प्रैक्टिस कर सकते हैं.

अंत में पर्सनली एक मेथड शेयर करना चाहूंगा जो मुझे लगता है कि बहुत कारगर है. लैंगुएज सीखने वालों के साथ ये एक कॉमन प्रोब्लम होती है कि अपने से बेहतर लैंगुएज जानने वालों या नेटिव स्पीकर्स के सामने बोलने या लिखने में घबराते हैं. उन्हें लगता है कि गलत बोलने पर वे क्या सोचेंगे, शायद हँसेंगे या और कुछ. ये हेजिटेशन लैंगुएज सीखने के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या है. आप सोच कर देखें कि बच्चे लैंगुएज क्यों जल्दी सीखते हैं. जब वो टूटे-फूटे वर्ड्स में और ग्रामैटिकली गलत-सलत सेंटेंस बोलते हैं तो वे बोलने से पहले ये नहीं सोचते कि सुनने वाला कौन है या वे जो बोल रहे हैं वो सही है या गलत. बोलते वक्त उनका सिर्फ एक उद्देश्य होता है ‘अपनी बात को सामने वाले तक कम्यूनिकेट करना.’ और यही भाषा का उद्देश्य है. गलत या सही कुछ नहीं होता. अगर आप बहुत ही करेक्ट और भारी-भरकम लेवल की भाषा बोल रहे हैं और सामने वाला समझ नहीं पा रहा तो उसका कोई अर्थ नहीं है. अपनी बात पहुंचाने के लिए बोलें और लिखें; सामने वाले को लिसनर और रीडर समझें, एक्जामिनर नहीं. फेसबुक पर, ब्लॉग पर, डायरी में उस लैंगुएज में लिखें. जब आप लिखेंगे तो आपको खुद पता चलेगा कि कौन से शब्द आपको नहीं पता, कौन सी बात एक्सप्रेस करने में आपको परेशानी हो रही है. फिर उन शब्दों को और एक्सप्रेशंस को इंटरनेट पर सर्च करें और समझें. गलत ही सही पर लगातार लिखते रहें. कुछ ही दिनों के बाद आप देखेंगे कि धीरे-धीरे आपकी लैंगुएज बेहतर होती जा रही है.

आप इस बारे में क्या सोचते हैं? आप लैंगुएज सीखने के लिए कौन सा तरीका इस्तेमाल करते हैं? क्या वह तरीका सफल है?

Filed Under: Featured, Languages, हिन्दी Tagged With: फॉरेन लैंगुएज स्टडी, विदेशी भाषा

About Satish Chandra Satyarthi

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Comments

  1. PARTISHODH RANJAN RAY says

    January 2, 2014 at 5:04 PM

    thx u sir

    Reply
  2. pbchaturvedi says

    January 7, 2014 at 8:20 PM

    अच्छी जानकारी…

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

    Reply
    • hardeep says

      March 4, 2015 at 3:13 AM

      Ham kuch soon bhi lay, kuch khay bhi dya. Per kessi ka kuch, fadha bhi to ho.

      Reply
  3. lcn sarthi says

    January 9, 2014 at 11:47 PM

    Nice note on learning language… thanks for guidelines sir..

    Reply
  4. s.kothiyal says

    February 25, 2015 at 2:40 AM

    Thanks for nice note.

    Reply

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