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बाबा नागार्जुन का काव्य संसार – भाग १

July 15, 2012 By Satish Chandra Satyarthi 1 Comment

बाबा नागार्जुन

जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में बीए करने के दौरान हिन्दी कविता का एक ऑप्शनल कोर्स लिया था. उसमें एक पेपर प्रेजेंट करना था किसी आधुनिक कवि के ऊपर. तो मैंने इसके लिए बाबा नागार्जुन को चुना था और जो पेपर मैंने बनाया और प्रेजेंट किया था उसे यहाँ इस ब्लॉग पर डाल रहा हूँ. साहित्य में तो रूचि शुरू से रही थी पर साहित्य की थ्योरी वगैरह से इससे पहले कभी वास्ता नहीं पड़ा था. बड़ी मेहनत की थी इसको तैयार करने के लिए. लाइब्रेरी में कई धूल पडी किताबों कों झाड़ पोंछ कर पढा, कई वेबसाइट्स और ब्लोग्स की ख़ाक छानी, कविताकोष पर भी समय बिताया. और किसी तरह लिख-लिखा कर आलेख तैयार किया। हालांकि गुणवत्ता से मैं ख़ुद संतुष्ट नहीं हूँ पर फ़िर भी लगा कि क्यों न इसे ब्लॉग पर डाल दिया जाए। अगर यह किसी शोध कार्य में सहायक नहीं भी हो तो कम से कम लोग पढ़कर आनंद तो ले ही सकते हैं। पढकर टिप्पणी ज़रूर दें कि आलेख आपको कैसा लगा। चूंकि यह आलेख बहुत लंबा है, आप इसे पढ़ते हुए बोर न हों इसलिए इसे छह भागों में बांटकर यहाँ पोस्ट किया है.

बाबा नागार्जुन – एक परिचय
नागार्जुन हिन्दी कविता के प्रगतिवादी युग के प्रखरतम कवि के रूप में जाने जाते हैं। वे हिन्दी कविता धारा के उन प्रमुख स्तम्भों में हैं जिन्होंने कविता कों न सिर्फ रचा बल्कि उसको जिया भी। हिन्दी काव्य साहित्य में उनका प्रवेश एक ऐसे क्रन्तिकारी कवि के रूप में होता है जो सच्चे अर्थों में सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। नागार्जुन जीवन और साहित्य दोनों में पीड़ित जन के पक्षधर रहे हैं। उनकी कविताएँ ‘जन’से निकलकर आती हैं और ‘जन’ की भाषा में ‘जन’ तक पहुँचती हैं। वे कोरे लेखक ही नहीं थे। जन आंदोलनों में भाग लेकर जेल यात्राएं भी की थीं।
नागार्जुन के व्यक्तित्व निर्माण में तत्कालीन राजनीतिक,धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों की मुख्य भूमिका रही है। और इसकी प्रतिक्रया भी उनके सम्पूर्ण साहित्य में देखी जा सकती है। नागार्जुन के हिन्दी साहित्य में पदार्पण का युग एक ऐसा युग था जिसमें जिसमें राजनीतिक उथल पुथल के साथ समाज अब भी पुरानी रुढियों में जकडा हुआ था। एक और अंग्रेजों का दमन निरंतर बढ़ रहा था तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त बुराइयां जैसे बाल विवाह, परदा प्रथा,अशिक्षा, विधवा समस्या आदि के कारण स्त्रियों की दशा शोचनीय थी। धार्मिक रुढ़िग्रस्तता, अंधविश्वास, आदि भी बढ़ते जा रहे थे। स्वतन्त्रता के बाद भी स्थितियों में तनिक भी परिवर्तन नहीं आया था। बल्कि राजनीति और अधिक भ्रष्ट हो गई थी। ऐसे में नागार्जुन जैसा संवेदनशील साहित्यकार कैसे इन स्थितियों से अछूता रह सकता था। वे स्वयं एक गरीब, निम्न-मध्यम-वर्गीय परिवार में पैदा हुए थे और अपने चारों ओर गरीबी , अपमान, दैन्य, विषमता में तड़पते किसानों,मजदूरों कों देखा था। अतः अमन और शान्ति की कविता न लिखना उनकी विवशता है। वे लिखते भी है-
कैसे लिखूं शान्ति की कविता,
अमन-चैन कों कैसे कड़ियों में बांधूं,
मैं दरिद्र हूँ पुष्ट-पुष्ट की यह दरिद्रता
कटहल के छिलके जैसी खुरदरी
जीभ से मेरा लहू चाटती आई
मैं न अकेला………..
मुझ जैसे तो लाख लाख हैं, कोटि कोटि हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि उन्होंने राग-बोध की कविताएँ नहीं लिखीं पर शोषण और अन्याय के प्रति विद्रोह और आम जन की पक्षधरिता उनके काव्य का मूल भाव है।
उन्होंने इतनी तीखी कविताएँ लिखीं कि व्यंग्य कहीं कहीं अतितीक्ष्ण बनकर औचित्य की सीमा का उल्लंघन कर बैठता है। जब चारों तरफ़ सामाजिक विसंगतियां हों वर्ग-भेद, वर्ग-शोषण, वर्ग संघर्ष अपने चरम पर हों तो उनकी कविताएँ भी कैसे सभ्रांत संस्कारों से आच्छादित हो सकती हैं। इसलिए उनकी कविता की भूमि ढोस खुरदरी है जो उनकी ठेठ’आखिन देखी’ की उपज है और ऐसे में उनकी तीखी नज़र से उपजा एकदम तीखा व्यंग्य यदि औचित्य की सीमा का अतिक्रमण भी कर जाता है तो वह हमें अखरना नहीं चाहिए। क्योंकि नागार्जुन एक ऐसी शख्सियत हैं जो एकदम कुंठारहित बेबाक शब्दों में बिना किसी डर के अपनी बात रखने की हिम्मत रखते हैं।
नागार्जुन का काव्य

नागार्जुन की कविताओं कों हम मुख्यतः चार श्रेणियों में रख सकते हैं। पहली, रागबोध की कविताएँ जिनमें प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम कविताओं कों रखा जा सकता है। दूसरी, यथार्थपरक कविताएँ जिनमें सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक यथार्थ कों दर्शाती कविताएँ हैं। तीसरे, राष्ट्रीयता से युक्त कविताएँ और चौथे व्यंग्य प्रधान कविताएँ। 

पहला भाग    दूसरा भाग      तीसरा भाग       चौथा भाग      पांचवां भाग      छठा और अंतिम भाग

Filed Under: हिन्दी Tagged With: Hindi Literature, Modern Hindi Poetry, आधुनिक हिन्दी कविता, बाबा नागार्जुन, हिन्दी साहित्य

About Satish Chandra Satyarthi

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Comments

  1. Prabha yadav says

    July 27, 2019 at 8:11 PM

    Very good.I like kavi nagarjun.

    Reply

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