बाबा नागार्जुन का काव्य संसार – भाग ५

by Dr. Satish Chandra Satyarthi  - July 15, 2012

प्रस्तुत है “नागार्जुन का काव्य संसार” श्रृंखला की वह कड़ी जिसका नागार्जुन के प्रशंसकों को शायद सबसे ज्यादा इंतज़ार होगा- बाबा नागार्जुन की व्यंग्यप्रधान कविताओं की चर्चा। पोस्ट थोड़ी बड़ी ज़रूर है पर विश्वास कीजिए एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद आप अंत तक पढेंगे। तो आइये शुरू करें —

( पर उससे पहले शायद आप पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा भाग भी पढ़ना चाहें …… )

व्यंग्य कविताएँ

नागार्जुन की सबसे अधिक पकड़ व्यंग्य पर ही है। जितनी व्यंग्य रचनाएं नागार्जुन ने हिन्दी साहित्य को दी हैं उतनी शायद ही किसी अन्य रचनाकार ने दी हो। कोई भी ऐसा वर्ग ऐसा नहीं है जो नागार्जुन के व्यंग्य की मार से बच सका हो। चाहे वह भ्रष्ट नौकरशाही हो, स्वार्थी राजनेता, सूदखोर, मुनाफाखोर, छायावादी कवि, कामचोर भिखारी या फ़िर फैशन और विलासिता में डूबी युवतियां उनका पैना व्यंग्य हर किसी को नंगा करता है। नागार्जुन का व्यंग्य एकदम उघडा हुआ व्यंग्य है जो लक्ष्य को चीरता हुआ, छीलता हुआ निकल जाता है। वे लपेट कर कोई बात नहीं कहते। बिल्कुल बेबाक और बेलौस व्यंग्य ही नागार्जुन को अन्य व्यंग्यकारों से अलग करता है।
नागार्जुन के व्यंग्य का सबसे प्रखर रूप उनकी राजनीतिक कविताओं में निखर कर आया है। गांधी जी कि मृत्यु के बाद राजनेताओं के बीच सत्ता की भूख और धनलोलुपता के कारण राजनीति का घोर पतन हुआ। गांधी के रामराज्य का जो हश्र हुआ उस पर व्यंग्य करते हुए नागार्जुन कहते हैं –

रामराज्य में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है
सूरत शकल वही है भइया, बदला केवल ढांचा है
लाज शर्म रह गई न बाकी, गांधीजी के चेलों में
फूल नहीं लाठियाँ बरसती रामराज्य की जेलों में।

‘खिचडी विप्लव देखा हमने’ संकलन अपने दौर की राजनीतिक परिस्थितियों का, राजनीति के पतन का ज्वलंत दस्तावेज है। इसमें मोरारजी, जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह और संजय गांधी से लेकर इंदिरा गांधी तक पर व्यंग्यात्मक कविताएँ लिखी गई हैं। यहाँ एक बात जो गौर करने लायक है वो है नागार्जुन की निर्भीकता। उनमें सता के प्रति डर नाम की कोई चीज थी ही नहीं। इमरजेंसी के दौर में भी जिस तरह उन्होंने इंदिरा गांधी पर तीखी कविताएँ लिखीं वो एक सच्चा क्रांतिकारी कवि ही कर सकता है। इंदिरा गांधी के हिटलरी रूप की तुलना वे बाघिन से करते हैं और पकड़कर चिडियाघर में बंद कर देने का भी आह्वान करते हैं।

पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुंह आप न नोचे!
पगलाई है, जाने, अगले क्षण क्या सोचे!
इस बाघिन को रखेंगे हम चिड़ियाघर में
ऎसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!

इंदिरा गांधी द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं के आगे अपने पिता के सुकर्मों पर पानी फेरे जाने को वे इस तरह व्यक्त करते हैं –

इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में, भूल गई बाप को?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको?
छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको
काले चिकने माल का मस्का लगा आपको
किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको
अन्ट-शन्ट बक रही जनून में
शासन का नशा घुला ख़ून में
फूल से भी हल्का
समझ लिया आपने हत्या के पाप को
इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!

वहीं दूसरी जगह वे कहते हैं –

दया उमड़ी, गुल खिले शर-चाप के
लाइए, मैं चरण चूमूं आपके
किए पूरे सभी सपने बाप के
लाइए, मैं चरण चूमूं आपके |

मोरारजी देसाई के लिए ‘भाई भले मोरार जी’ कविता का यह अंश देखिये –

हाय तुम्हारे बिना लगेगा सुना यह संसार जी

गिरवी कौन रखेगा हमको सात समंदर पार जी

वोटों की राजनीति पर व्यंग्य करते हुए टिकट पाने की घुड़दौड़ का दृश्य नागार्जुन कुछ यों प्रस्तुत करते हैं –

श्वेत श्याम रतनार अँखियाँ निहार के
सिंडीकेटी प्रभुओं की पगधूर झार के

दिल्ली से लौटे हैं कल टिकट मार के
खिले हैं दांत दाने ज्यों अनार के
आए दिन बहार के।

और वोट पाने की जुगत भी देखिये –

बेच-बेचकर गांधीजी का नाम
बटोरो वोट
बैंक बैलेंस बढाओ
राजघाट पर बापू की वेदी के आगे अश्रु बहाओ।

नागार्जुन ने सिर्फ़ राजनीति को ही नहीं बल्कि उस नौकरशाही को भी आड़े हाथों लिया है जो ऑफिस में तो गांधी की फोटो टांगते हैं और भीतर से धूर्त हैं। रिश्वत और कदाचार में घिरी नौकरशाही को कुछ यों रगड़ते हैं बाबा नागार्जुन –

दो हजार मन गेहूं आया दस गांवों के नाम
राधे चक्कर लगा काटने सुबह से हो गई शाम
सौदा पटा बड़ी मुश्किल से पिघले नेता राम
पूजा पाकर साध गए चुप्पी हाकिम हुक्काम
भारत सेवक जी को था अपनी सेवा से काम
खुला चोर बाजार, बढ़ा चोकरचूनी का दाम
भीतर झरा गयी ठठरी, बाहर झुलसी चाम
भूखी जनता की खातिर आजादी हुई हराम।

नेताओं के कारनामों से देश की जो स्थिति हो रही है उसका वर्णन कुछ इस प्रकार है –

कुर्सी कुर्सी गद्दी गद्दी खेल रहे हैं
घटक तंत्र का भ्रूणपात ही खेल रहे हैं
जोड़-तोड़ के सौ-सौ पापड बेल रहे हैं
भारत माता को खादी में ठेल रहे हैं।

देश की इस दुर्दशा से नागार्जुन क्षुब्ध तो हैं पर साथ ही कहीं न कहीं उनके मन में आशा की एक किरण भी है कि क्रान्ति का जो बीज जन-मानस के दिलों में सुगबुगा रहा है वह एक दिन ऊपर ज़रूर आयेगा। और इन आतताइयों के शाषण को उखाड़ फेंकेगा।

ऊपर-ऊपर मूक क्रांति, विचार क्रांति, संपूर्ण क्रांति
कंचन क्रांति, मंचन क्रांति, वंचन क्रांति, किंचन क्रांति
फल्गु सी प्रवाहित होगी, भीतर भीतर तरल भ्रान्ति।

 अगला भाग इस श्रृंखला का अन्तिम भाग होगा जिसमें बाबा नागार्जुन के काव्य शिल्प की चर्चा होगी और उन स्रोतों की सन्दर्भ सूची भी होगी जिनसे मैंने इस श्रृखला को तैयार करने में मदद ली थी।

पहला भाग    दूसरा भाग      तीसरा भाग       चौथा भाग      पांचवां भाग      छठा और अंतिम भाग

bonus

Get the free guide just for you!

Free

नागार्जुन का काव्य शिल्प - अंतिम भाग

Dr. Satish Chandra Satyarthi

Dr. Satish Satyarthi is the Founder of CEO of LKI School of Korean Language. He is also the founder of many other renowned websites like TOPIK GUIDE and Annyeong India. He has been associated with many corporate companies, government organizations and universities as a Korean language and linguistics expert. You can connect with him on Facebook, Twitter or Google+

  • I consider myself immensely blessed as I had the divine opportunity to sit in the lap of Baba Nagarjun when I must be around 5-6 years old and he recited the poem and made me learn the same – Indu Ji Kya Hua Aapko – which he had written probably recently. I did not know at that time that I was sitting in the lap of a human being as great as baba nagarjun.

  • बहुत ही सार्थक और सराहनीय कार्य। बाबा नागार्जुन के लिए। आपको बहुत बहुत बधाई।

  • राधे चककर लगा काटने सुबह से हो गई शाम (radhe ka kya arth hai)

  • {"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}

    You may be interested in

    >