बाबा नागार्जुन का काव्य संसार – भाग ३

by Dr. Satish Chandra Satyarthi  - July 15, 2012

आपने बाबा नागार्जुन श्रृंखला का पहला और दूसरा भाग पढा। दूसरे भाग में हमने उनकी रागबोध की कविताओं पर चर्चा की थी। इस भाग में उनकी यथार्थ परक कविताओं पर चर्चा होगी। इस भाग में हम सिर्फ़ बाबा की सामाजिक यथार्थ का वर्णन करती कविताओं को देखेंगे। अगले भाग में आर्थिक यथार्थ राष्ट्रप्रेम और फ़िर व्यंग्यात्मक कविताएँ।

यथार्थपरक कविताएँ

बाबा ने अपनी कविताओं का भाव-धरातल सदा सहज और प्रत्यक्ष यथार्थ रखा, वह यथार्थ जिससे समाज का आम आदमी रोज जूझता है। यह भाव-धरातल एक ऐसा धरातल है जो नाना प्रकार के काव्य-आंदोलनों से उपजते भाव-बोधों के अस्थिर धरातल की तुलना में स्थायी और अधिक महत्वपूर्ण है। नागार्जुन ने सही मायने में शोषित, प्रताडित, गरीब लोगों कों वाणी दी। किसान, मजदूर और निम्न-मध्यवर्ग का शोषण करने वाली ताकतों के वे हमेशा विरोधी रहे और व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए क्रांति का आह्वान करते रहे। विश्वम्भर मानव के शब्दों में कहें तो, “व्यक्तिगत दुःख पर न रूककर वे व्यापक दुःख पर प्रकाश डालते हैं और यही सच्चे कवि की पहचान है।“
नागार्जुन की कविता न सिर्फ़ यथार्थ का निरूपण करती है बल्कि उन मानव शक्तियों की खोज का मार्ग भी दिखाती है जिसके द्वारा मुक्त और शोशंहीन समाज की स्थापना की जा सके।
सामाजिक यथार्थ – नागार्जुन की विशेषता है कि उन्होंने अपने यथार्थवाद को निरंतर ऊँचे धरातल पर पहुँचाया है। उनकी कविताओं में सामाजिक संघर्ष मुख्य रूप से मुखरित हुआ है। जब व्यक्तिवादी कवि अपने ही घेरे में बंधे ख़ुद के सुख-दुःख का राग अलाप रहे थे तब नागार्जुन ने अपनी कविता कों सामाजिक यथार्थ की तरफ़ मोडा था। वे अपने समय के यथार्थ से गहरे जुड़े हुए थे। यथार्थ के सभी पहलुओं पर उनकी पैनी नज़र थी और उनके विचारों और कार्य में कहीं कोई द्वैतता नहीं थी। धीरे धीरे नागार्जुन मार्क्सवादी विचारधारा की और आकर्षित हुए और इसी आकर्षण के कारण उनकी चेतना विश्व-चेतना की और बढ़ी। उनकी कविताओं में रागबोध का स्थान धीरे धीरे यथार्थबोध ने ले लिया और वे अन्याय, शोषण, गरीबी, भुखमरी, बदहाली, अकाल अदि स्थितियों कों अपनी कविताओं में चित्रित करने लगे। ‘खुरदरे पैर’ में जहाँ वे एक रिक्शाचालक के यथार्थ का मार्मिक चित्रण करते हैं-
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
दे रहे थे गतिरबड़-विहीन ठूंठ पैडलों को
चला रहे थेएक नहीं, दो नहीं,
तीन-तीन चक्रकर रहे थे मात
त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
वहीं ‘देखना ओ गंगा मैया’ में गंगा की धारा में यात्रियों द्वारा फेंके गए पैसे ढूंढते नंग-धड़ंग छोकरों की अनुभूतियों और इच्छाओं के सजीव दृश्य प्रस्तुत करते हैं-
बीडी पीयेंगे…………..
आम चूसेंगे…
या कि मलेंगे देह मेंसाबुन की सुगन्धित टिकिया
लगाएंगे सर में चमेली का तेल
याकि हम उम्र छोकरी कों टिकली ला देंगे।
यहाँ भारत के बीडी पीते भविष्य और निम्नवर्ग की अतृप्त इच्छाओं और अभावग्रस्त जिन्दगी का यथार्थ मौजूद है। चाहे वह ‘प्रेत का बयान’ में परिवार का पालन-पोषण करने में असमर्थ एक प्राइमरी मास्टर की व्यथा का वर्णन या ‘अकाल और उसके बाद’ फ़ैली भूखमरी का चित्रण; नागार्जुन ने हमेशा वर्ग-वैषम्य, अंतर्विरोधों और व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक यथार्थ के चित्रण किया है. नागार्जुन कों ये महसूस हुआ कि आजादी के बाद भी देश की प्रगति के रुके रह जाने का मूल कारण धनी और सुविधाप्राप्त वर्ग है जो रूढिवादी और जनविरोधी है।यही वर्ग पूरे देश पर हावी होता जा रहा है। जमींदारों और पूंजीपतियों का उत्पादन और उत्पादन के साधनों पर अधिकार होता चला गया और गरीब और अधिक गरीब होता चला गया।
खादी ने मलमल से सांठ-गांठ कर डाली है
बिड़ला, टाटा और डालमियां की तीसों दिन दीवाली है
जोर-जुल्म की आंधी चलती,
बोल नहीं कुछ सकते हो,
समझ नहीं पाता हूँ कि
हुकूमत गोरी है या काली है।
साहित्यकारों में आजादी के कुछ वर्ष पहले और कुछ वर्ष बाद तक एक सामाजिक दायित्वहीनता आ गई थी। नागार्जुन ने अपनी कविताओं के माध्यम से साहित्यकारों कों दायित्व बोध कराने की कोशिश की है।
इतर साधारण जनों से अलहदा होकर रहो मत
कलाधर या रचयिता होना नहीं पर्याप्त है
पक्षधर की भुमिका धारण करो………… ।
(बाबा नागार्जुन की आर्थिक यथार्थ से सम्बंधित कविताओं की समीक्षा के लिए अगले भाग पर जाएँ। )

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बाबा नागार्जुन का काव्य संसार - भाग ४

Dr. Satish Chandra Satyarthi

Dr. Satish Satyarthi is the Founder of CEO of LKI School of Korean Language. He is also the founder of many other renowned websites like TOPIK GUIDE and Annyeong India. He has been associated with many corporate companies, government organizations and universities as a Korean language and linguistics expert. You can connect with him on Facebook, Twitter or Google+

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