Satish Satyarthi

  • Home
  • Blogging
  • Technology
  • Learn Korean
  • 힌디어 배우기

Connect with Me

  • Facebook
  • Google+
  • LinkedIn
  • Twitter

Powered by Genesis

Home » हिन्दी » गुरुजी, आपको नमन!

गुरुजी, आपको नमन!

September 5, 2012 By Satish Chandra Satyarthi 9 Comments

गुरुजी

गुरुजी की कोई तस्वीर नहीं मेरे पास

हमारे जीवन में कई लोग कुछ शब्दों और भावनाओं के पर्याय से बन जाते हैं. वे उन शब्दों से इस कदर से जुड़े होते हैं कि उनके बिना उस शब्द का कोई अर्थ नहीं रह जाता और अगर अर्थ होता भी है तो अधूरा सा. मेरे जीवन से में ऐसे ही एक शख्स हैं- गुरुजी. गुरु शब्द के पर्याय- गुरुजी. जी हाँ, उनका नाम भी गुरुजी है. पूरा गाँव उन्हें गुरुजी कहकर बुलाता है. गाँव वाले ही नहीं आसपास के गाँवों वाले भी. बच्चे, बड़े, बूढ़े, मर्द औरत सब. गुरुजी का असली नाम था ‘नवल किशोर सिंह’.. पर वह नाम केवल उनके  लिए आने वाली चिट्ठियों के पतों में और उनके दस्तखत में दिखता था. बाकी सभी जानने वालों के लिए वे बस गुरुजी थे.

गुरुजी हमारे गाँव के नहीं हैं. वे पता नहीं कब दूर के एक जिले के किसी गाँव से आये थे. बताते हैं कि हमारे  गाँव के एक बुजुर्ग (जो बहुत पहले गुजर गए) के साथ चले आये थे और उनके घर के बाहर के खाली दालान की एक कोठरी में रहने लगे थे और बरामदे में गाँव के बच्चों को पढ़ाने लगे थे. वे अपने अपना परिवार छोड़कर क्यों हमारे गाँव आये थे इस बारे में लोग तरह-तरह के अनुमान लगाते हैं लेकिन सही तरह से किसी को पता नहीं.

गुरुजी कोई पचास-साठ साल पहले आये थे गाँव में. जब वे लड़के थे. बताते हैं ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे गुरुजी. अच्छी तरह नहीं पता पर हाई-स्कूल से कम ही पढ़े थे. जब वो आये थे तब शायद हमारे गाँव के आसपास कोई स्कूल नहीं था. उन्होंने अपनी पाठशाला शुरू की थी खपरैल के छप्पर वाले उस बरामदे में जिसे गाँव के लोग ‘गुरपिंडा’ बोलते थे. शायद ‘गुरुपिंड’ रहा हो शुरू में जो बाद में बिगड़ कर गुरुपिंडा हो गया हो.

तो गुरपिंडा तीसरी कक्षा तक था. शायद शुरू में कक्षा का कॉन्सेप्ट नहीं रहा होगा. वो बाद में बना. . तीसरी कक्षा खत्म करने के बाद बच्चे सरकारी स्कूल में चौथी कक्षा में जाता थे. आसपास का हर स्कूल उनके अनरजिस्टर्ड स्कूल के मौखिक सर्टिफिकेट को मानता था. पाठशाला में बच्चे अपना बोरा, स्लेट, खड़िया, पोथी, कापी कलम लेकर जाते थे.  पाठशाला का समय गजब था – कुल तीन सेशंस होते थे. पहली पाली सुबह छः-सात-आठ बजे शुरू होती थी (ऋतु और मौसम के अनुसार) और दस-ग्यारह बजे पहली छुट्टी होती थी. बच्चे अपने घर जाते थे और खाना खाकर फिर आधे-एक घंटे में वापस आते थे. फिर दूसरी पाली दो-तीन बजे तक चलती थी और फिर दूसरी छुट्टी होती थी. बच्चे फिर खाना खाने जाते और फिर आते और फिर अंतिम सेशन शाम के पाँच-छः बजे तक चलता. पाठशाला की फीस कितने से शुरू हुई होगी यह नहीं पता पर जब हम वहाँ से ग्रेजुएट हुए तो फीस पाँच रुपया महीना थी. कक्षा का कोई अंतर नहीं. सबके लिए एक जैसी फीस. उनकी पाठशाला में ब्राह्मणों से लेकर दलितों, महादलितों तक सबके बच्चे एक साथ जमीन पर बैठकर पढ़ते थे. कुल मिलाकर अपने आप में अनोखी थी पाठशाला. खैर पाठशाला पर फिर कभी.. अभी गुरुजी की बात करते हैं.

गुरुजी ने उस बरामदे में तीस सालों से ज्यादा पढ़ाया. फिर उस घर की नयी पीढ़ी के लोग उनको परेशान करने लगे. कोई शराब पीने के लिए उनसे पैसे माँगता था तो कोई पीकर तंग करता था. एक बार घर के मालिक ने उन्हें वह जगह छोड़कर जाने को कह दिया. गुरुजी गाँव छोड़ने को तैयार हो गए. इतने में मेरे बड़े भैया को पता नहीं क्या हुआ कि वो जाके गुरुजी से बोले कि आप मत जाइए. चलिए हमारा दालान खाली है. बगल का कमरा भी खाली है.. ऐसे भी टोले-मोहल्ले के बच्चे दालान पर उधम मचाते रहते हैं. आप दरवाजे पर रहेंगे तो हमारे घर का संस्कार भी बढ़ेगा और गाँव के  बच्चे भी सुधरे रहेंगे. तो यूँ गुरुजी हमारे दालान पर आ गए. हम बच्चों ने उत्साह में उनकी चौकी, कुर्सी, बिस्तर, पोटली वगैरह उत्साह से दौड़-दौड़ कर ट्रांसफर किया. गुरुजी को दोपहर और रात का खाना पहुंचाना. दवाई-पानी लाना घर के बच्चों के काम में एक्स्ट्रा जुड गया.

गुरुजी के पैरों में बचपन से हड्डियों की कोई गंभीर बीमारी थी. लाठी लेकर धीरे-धीरे चलते थे. भव्य व्यक्तित्व के मालिक थे गुरुजी – लंबा छरहरा बदन, चौड़ा दमकता ललाट, धोती कुर्ता और पैरों में लकड़ी की खड़ाऊं. उनका सारा काम पाठशाला के बच्चे ही करते थे. उनके बर्तन-कपड़े धोना, कमरे की सफाई करना, पानी लाना. धीरे-धीरे उन्हें चलने में भी परेशानी होने लगी थी. बच्चे और आसपास के लोग उनको उठाकर कुँए और शौचालय तक ले जाते थे. पर गुरुजी के स्नान, पूजा का नियम कभी नहीं टूटा.

गुरुजी ने विवाह नहीं किया था. पूरा जीवन उन्होंने शिक्षा को ही अर्पित कर दिया. गुरुजी ने गाँव की तीन-चार पीढ़ियों को पढाया. उनके पढ़ाए बच्चे चपरासी से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर और सांसद तक बने. पर गुरुजी वहीं रहे. अपनी उसी लकड़ी कि एक चौकी और एक पुरानी कुर्सी पर. पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान बांटते. मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उनके प्रिय छात्रों में से एक था. वो अक्सर मगही में बोलते थे ‘तों पढ़े में शुरुए से ठीक हलें..हमरा हमेशा लगो हलौ कि टू कुछ अच्छा करमही (तू पढ़ने में शुरू से ठीक था.. मुझे हमेशा लगता है कि कि तुम कुछ अच्छा करोगे).. और यह सुनकर मुझपर हमेशा लगता था कि गुरुजी फालतू की उम्मीद रखे हुए हैं मुझसे. कौन समझाए इन्हें कि बचपन में पहाड़ा-ककहरा अच्छा याद करना और हिन्दी धाराप्रवाह पढ़-लिख लेना आजकल टैलेंट का मापदंड नहीं है.. पर बस जी-जी करके रह जाता था.  मैं इंटर के बाद बिहार से बाहर चला आया था. साल छः महीने में घर जाता था तो घर में घुसने से पहले दालान पर गुरुजी चौकी पर लेटे मिलते थे. जेनेरली पहले व्यक्ति वही होते थे जिनके पैर छूता था. फिर वहीं खड़े-खड़े थोड़ी देर बात होती थी. अपनी मगही भाषा में ही. वो पूछते कि पढ़ाई-लिखाई सब ठीक चल रही है न? और मैं पूछता कि आपकी तबियत ठीक रहती है न?

फिर वही वार्तालाप एक बार दुबारा तब होता जब मैं घर से लौटने लगता. बैग कंधे पर लिए….. मन लगाकर पढ़ना.. स्वास्थ्य का ध्यान रखना… जी..जी.. फिर पैर छूता और निकल जाता… हर वक्त निकलते समय सोचता कि गुरुजी के नाम को ऊँचा करना है. कुछ अच्छा करना है. जिससे उनको नाज हो.. इस बार जब कोरिया आने की बात चल रही थी तों उनसे पूछा था,”कुछ समझ में नहीं आ रहा.. जाऊं या यहीं कुछ करूं” बोले,”नहीं, अच्छा अवसर मिला है.. जाओ” फिर आते  समय वही ‘मन लगाकर पढ़ना.. स्वास्थ्य का ध्यान रखना’… ‘जी..जी.. आप भी ध्यान रखियेगा अपना’..”

यहाँ आने से पहले तक कैमरा नहीं था मेरे पास. मोबाइल भी सस्ता नोकिया वाला था, बिना कैमरे का. पिछले साल प्लैन बनाया कि दिसंबर के अंत में घर जाऊँगा. दिमाग में कुछ चल रहा था. एक कैमरा खरीदा कैनन का. बहुत रिसर्च करके. प्लैन था कि इस बार गुरुजी की कुछ अच्छी तस्वीरें खींच कर लानी है. वीडियो भी.. पढ़ाते हुए. फिर उनके बारे में लिखूंगा और बताऊंगा लोगों को कि कैसे कोई शारीरिक रूप से लाचार इंसान आज भी बीस रूपये महीने में कई गाँवों के अमीर-गरीब बच्चों को शिक्षा बाँट रहा है. गुमनाम.. बिना किसी पुरस्कार और सम्मान के. उनके बारे में ऐसे भी लोगों को बताते हुए मेरी आँखों में एक चमक आ जाती है. जैसे किसी फिक्शनल कैरेक्टर के बारे में बता रहा हूँ.

पर मेरा दुर्भाग्य या पिछले जन्मों का पाप कि वो दिन कभी नहीं आ पाया. भारत जाने के कुछ ही दिन पहले खबर मिली कि गुरुजी नहीं रहे. फोन रख दिया था सुनके मैंने. मन सुन्न सा रहा काफी देर तक. फिर लेट गया था बिस्तर पर. काफी दिनों बाद खुलकर रोया था. आज यह लिखते हुए भी ………………….

इस बार घर पहुंचा तो दालान का बरामदा खाली था. वो चौकी भी खाली थी जिसपर गुरुजी लेटे होते थे. रुका था इस बार भी थोड़ी देर वहां पर. लगा भी कि गुरुजी अभी भी उसी चौकी पर लेटे हों… सफ़ेद धोती और आधे बांह की झकझक सफ़ेद गंजी पहले…जैसे अब भी पूछ रहे हों ‘पढ़ाई ठीक चल रही है न? खाने-पीने की दिक्कत तो नहीं वहाँ?’ और मैं बस जी-जी कर रहा हूँ…  अभी यह सब लिखते हुए भी लग रहा है कि गुरुजी वहीं बैठे होंगे  कुर्सी पर.. नीम का दातुन चबाते हुए. छड़ी और पीतल का लोटा बगल में वैसे ही रखा होगा.. यहाँ उनके बारे में लिखते हुए वाक्य में ‘था/थी/थे’ लगाने में अजीब सा लग रहा था; कई जगह नहीं लगा पाया हूँ. यह पूरा विश्वास है कि गुरुजी वहां बरामदे पर हों या न हों उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है और रहेगा… बस एक ही मलाल हमेशा रहेगा कि गुरुजी को अंतिम समय में देख नहीं पाया. उनके जीते जी कुछ कर नहीं पाया.

आज गुरुजी को नमन करते हुए दुनिया के उन तमाम गुरुजनों को नमन कर रहा हूँ जो एक व्यक्तित्व, एक जीवन, एक पीढ़ी, एक भविष्य, एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर रहे हैं. काश जीवन में उनका एक अंश भी बन पाऊं..

[गुरुजी पर कितना कुछ है लिखने को.. बताने को. पर अभी लिखने का मन नहीं कर रहा… बहुत भावुक महसूस कर रहा हूँ.. फिर कभी…]

 

Filed Under: हिन्दी Tagged With: Guruji, गुरुजी

About Satish Chandra Satyarthi

I am Satish - a professional blogger and language educator. You can connect with me on Facebook, Twitter or Google+

Comments

  1. Prashant Sharma says

    September 5, 2012 at 4:00 PM

    A true teacher………….
    Aise hi log hain jinke dum per koi bada banta hai……….
    Agar ye hame Khadiya ,Ginti aur pahade na padate to sayad aaj hum yahan nahi hote…………
    Kisi ne sahi kaha hai guru bin gyan na haoi………..
    Bhale hi guru kasie bhi hon…………
    Apke Guru ko Naman<
    Mere Master ji ko naman..
    Sare guru aur Masterji ko Naman…….

    Reply
    • Satish says

      September 5, 2012 at 10:53 PM

      सारे गुरुओं को नमन…

      Reply
  2. NIKHIL JOHRI says

    September 5, 2012 at 4:13 PM

    acha likha hai aapne! kuch palon ki liye aisa laga wapas school aur coaching mein pahuch gya hu! teachers day par mera bhi naman.. aapka blogs padkar haemesha yehi lagta hai jis desh se education, morals, respect aur jeevan mein sab kuch paaya par abhi tak usi desh ke kisi kaam na aa paaya! nyway keep writing. aapke blogs par woh kavita ki kuch lines haemesha yaad aati hai – desh ne tumko choda tha ya ya fir tum ne desh ko choda tha, Kyon apno se muh moda tha.sab risto ko kyon toda tha,Arre jo bhi tha kya thoda tha..

    Reply
    • Satish says

      September 5, 2012 at 10:52 PM

      धन्यवाद निखिल जी… आपकी कविता की लाइन्स अच्छी लगी..

      Reply
  3. anupkidak says

    September 6, 2012 at 2:45 AM

    अद्भुत आत्मीय संस्मरण! मन खुश, उदास और भावुक हो गया। गुरुजी को नमन। स्केचिंग सीखकर उनका स्केच बना लो।

    Reply
    • Satish says

      September 8, 2012 at 12:30 AM

      काश बना पता स्केच.. अगली बार भारत जाऊँगा तो अच्छे से पता करूँगा.. शायद किसी और के पास हो कोई तस्वीर…

      Reply
  4. pankaj kumar sah says

    September 6, 2012 at 5:01 PM

    श्रीमान जी मैंने आपका ब्लॉग देखा बढ़िया लगा बस निरंतरता बनाये रखें और कभी फुर्सत मिले तो http://pankajkrsah.blogspot.com पर पधारने का कष्ट करें आपका स्वागत है

    Reply
    • Satish says

      September 8, 2012 at 12:31 AM

      आपका ब्लॉग अच्छा लगा पंकज जी…

      Reply
  5. दिवाकर मणि says

    September 7, 2012 at 6:50 PM

    गोलोकवासी गुरूदेव को इससे प्यारी गुरूदक्षिणा और क्या मिल सकती है जो तुमने इस आलेख के माध्यम से दिया है. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे..

    Reply

Please Leave your Comment Cancel reply

Subscribe to my blog

Get all new posts into your inbox!

My Courses on Udemy

Recent Posts

  • How to Setup Cloudflare Free SSL on a WordPress Site (2021)
  • Free Cloudflare CDN – Latest Setup for WordPress (2021)
  • Free Books and Online Courses You can Use during Lockdown
  • Increase the Maximum File Upload Size in WordPress
  • Should you master Grammar and Vocabulary before you start reading authentic text?
  • WordPress and Adsense Asynchronous Code – 2 Minute Guide

Top Posts & Pages

  • बाबा नागार्जुन का काव्य संसार - भाग २
  • बाबा नागार्जुन का काव्य संसार - भाग ३
  • कल्याण पत्रिका गीताप्रेस
  • Free Books and Online Courses You can Use during Lockdown
  • बाबा नागार्जुन का काव्य संसार - भाग १
  • बाबा नागार्जुन का काव्य संसार - भाग ५
  • गुरुजी, आपको नमन!
  • Solution - Hostgator WordPress Emails going to Spam
  • How to Setup Cloudflare Free SSL on a WordPress Site (2021)
Integrately - Integration platform
 

Loading Comments...