भारत एक शायरी प्रधान देश है. यहाँ लड़के-लड़कियाँ देश के राज्य-राजधानियों के नाम बाद में सीखते हैं, शेरो-शायरी पहले. काम की चीज है भाई. जहाँ सब लोग अपना लंबा-चौड़ा ज्ञान पेल रहे हों वहाँ एक ज़ोरदार शेर ठेल दो. पूरा भोकाली बन जाता है. मूर्ख लोग इतिहास, राजनीति शास्त्र, विज्ञान वगैरह पढ़ते हैं; अकलमंद शेरो-शायरी. ये अकलमंद हर सिचुएशन के लिए एक शेर रेडी रखते हैं. सिचुएशन आयी नहीं कि शेर ठेल दिया. जनता चारों-खाने चित. ज्ञानी लोग क्या खाकर शेरों का मुकाबला करेंगे.
अब इन अकलमंदों में भी जो थोड़े मूर्ख टाइप के अकलमंद होते हैं वो शेरो-शायरी में मास्टरी प्राप्त करने के लिए ग़ालिब, मीर, फ़राज़ वगैरह को पढ़ते हैं. होशियार लोग ऐसी भारी भरकम किताबों पर मगज़मारी करने को समय और जो थोड़ी सी अकल है उसकी बर्बादी समझते हैं. ऐसे लोग असली शायरी के लिए मेलों, पुराने बाजारों की गलियों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बसों का रुख करते हैं. वहाँ सही माल मिलता है. सस्ती, उत्तम और टिकाऊ शायरी. पाँच रूपये में ‘जीजा-साली की शायरी’ से लेकर देवर-भाभी की शायरी’ और ऐसे-ऐसे खतरनाक शायरी एडिशन मिल जाते हैं कि देख लें तो ग़ालिब और मीर लाल-किले से कूद कर आत्महत्या कर लें; गुलज़ार और जावेद अख्तर शायरी छोड़कर पापड़ बेचना शुरू कर दें. इन्हीं पुस्तकों में जीवन का सही राज छुपा है, जीवन की हर मुश्किल का हल. जिसने इन ग्रंथों में लिखे शेरों को कंठस्थ कर लिया उसे जीवन में सफल होने से भगवान, पाकिस्तान, विपक्ष कोई भी नहीं रोक सकता.
संसद भवन इन शेरों के प्रयोग के लिए सबसे उपयुक्त स्थल है. आखिर इससे उत्तम जगह और हो भी क्या सकती है. देश की सबसे महान प्रतिभाएं यहीं बैठती हैं. यहाँ पर अपने शेरो-शायरी ज्ञान का प्रदर्शन करके वो जनमानस का सही अर्थों में भला कर रहे होते हैं. ज्ञान को बांटने से बड़ा धर्म कोई हुआ है आजतक. संसद भवन न होती तो भारत की एक अरब जनता न जाने कितने महान शेरों से वंचित रह जाती. संसद का शेरों का गौरवशाली इतिहास रहा है. लालू यादव के रेल बजट के ऐतिहासिक शेरों से लेकर ममता बनर्जी और सुषमा स्वराज के कालजयी शेरों तक. रेल बजट के इतिहास में दर्ज कुछ कालजयी शेरों का जिक्र न करना न सिर्फ इन महान शायरों बल्कि हमारी रसिक संसद का भी अपमान होगा-
कारीगरी का ऐसा तरीका बता दिया
घाटे का जो भी दौर था बीता बना दिया
भारत की रेल विश्व में इस तरह की बुलंद
हाथी को चुस्त कर उसे चीता बना दिया।
मुसाफिर और कुली का साथ, बरसों से निरंतर है,
उसे सम्मान दें, जो रात-दिन सेवा में तत्पर है।
मैं नतमस्तक हूं सबका, शुक्रिया भी हूं अदा करता,
मेरी कोशिश में शामिल हैं सभी, और कामयाबी में भी
अब ऐसे कालजयी शेरों को पढकर किसकी आँखों में आंसू न आ जाएँ. आज इस गौरवशाली इतिहास में आज एक स्वर्णिम नाम और जुड गया. अपनी मौनी प्रधानमंत्री श्री मंदमोहन सिंह. उनके द्वारा कहा गया शेर निश्चय ही भारत के हिन्दी-उर्दू साहित्य की परम्परा में एक मील का पत्थर होगा और आने वाले टटपूंजिए शायर इससे प्रेरणा लेंगे:-
हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी,
न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।
मेरा तो मानना है कि इस शेर को भारत सरकार को साहित्य के नोबेल के लिए भेजना चाहिए. टैगोर के बाद साहित्य में सही माल अबकी बार ही आया है. इस शेर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे ऐसे शायर ने बोला है जो बोलता ही नहीं. अब समझ में आया कि इनको एक समय लंबी रेस का घोड़ा क्यों बोला गया था. नहीं बोला तो नहीं ही बोला और बोला तो क्या बोला है.
देश में भ्रष्ट्राचार, मंहगाई से जनता के नाक में दम है. लोग जंतर मंतर पर लाठी और आंसू गैस खा रहे हैं. दंगों में सैंकडो लोग मारे गए. नोर्थ-ईस्ट के हजारों लोगों को अपनी ही देश में बोरिया बिस्तर समेटकर इधर से उधर भागना पड़ रहा है. हर ओर से हजारों सवाल दागे जा रहे हैं सरकार पर, प्रधानमंत्री पर. पर प्रधानमंत्री हो तो ऐसा हो. गबरू जवान. ऐसा शेर मारा की सारे सवाल करने वाले चित. टीवी चैनल, अखबार वाले पत्रकार फेल शेर का मतलब निकालने में. बड़े शायर का काम होता है शेर ठेल देना. मतलब जैसी छोटी चीजों पर वह टाइम वेस्ट नहीं करता.
खामखा लोग इनको सालों से परेशान कर रहे थे. बोलते नहीं हैं, बोलते नहीं हैं.. खामोश रहते हैं.. कैसे प्रधानमंत्री हैं.. धत्त… एकदम बांगडू हैं… मूर्खों को पता ही नहीं था कि इनकी खामोशी के पीछे इतना महान और पवित्र उद्देश्य छुपा हुआ था. ‘सवालों की आबरू रखना’. धन्य हैं हमारे प्रधानमंत्री. धन्य है भारत की धरती जिसने ऐसे महान नेता और कालजयी शायर को जन्म दिया.
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने शायरों व् शायरी का देखिये हम भी उन में से ही एक हैं.कभी आइये हमारे ब्लॉग पर भी .आभार.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
धन्यवाद… आपके ब्लॉग पर हो आया… आप शायरी में मनमोहन सिंह को ट्यूशन दे सकती हैं 😉
बात-बतकही में शायरी का ना होना जैसे खाने में नमक का ना होना |
बहुत ही रोचक,,,आपने शायरी करने वाले से लेकर-लालू जी-“मंदमोहन” जी तक…. सबके मजे ले लिए…:)
Great analysis.