बच्चों की हाइट को लेकर ऑबसेस्ड कोरियाई मम्मियां

by Dr. Satish Chandra Satyarthi  - July 16, 2012

कोरियाई भाषा में एक कहावत है “작은 고추가 맵다 (छागन खोच्छुगा मैप्ता)” जिसका मतलब होता है कि ‘छोटी मिर्ची ज्यादा तीखी होती है’. इस कहावत का प्रयोग लम्बाई-चौड़ाई में छोटे व्यक्ति को हल्के में नहीं लेने के अर्थ में होता है. पर आजकल कोरिया में इस कहावत पर से लोगों का विश्वास उठ गया है. कोरियाई समाज में हाईट को लोग आजकल ज्यादा ही गंभीरता से ले रहे हैं. अच्छी हाईट को सफलता का एक पैमाना माना जा रहा है. अच्छी हाईट की चाहत आजकल लगभग सभी देशों में लोगों को होती है पर कोरिया में यह क्रेज पागलपन की हद तक पहुँच गया लगता है. और इस क्रेज की सबसे बड़ी शिकार हैं कोरियाई मम्मियां जो अपने बच्चों की हाईट को कुछ सेंटीमीटर बढाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.

कोरियाई लोग मूल रूप से लम्बाई में थोड़े छोटे होते हैं पर हाल के वर्षों में इनकी औसत लम्बाई बढ़ी है. कोरिया दुनिया के उन देशों में है जहां पढ़ाई से लेकर नौकरी और यहाँ तक की अच्छा जीवनसाथी तक पाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है. ऐसे में बाहरी रंग-रूप, शारीरिक बनावट, लम्बाई आदि बातें भी कहीं न कहीं इस प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. और जहां कहीं भी लोगों को पता चलता है कि कोई एक चीज उन्हें प्रतिस्पर्धा में अन्य लोगों से  आगे कर सकती है तो लोग उसके लिए पागल की तरह पैसे और समय खर्च करने को तैयार हो जाते हैं. मुझे अपनी एक शिक्षक से यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि कोरियाई मम्मियां अपने बच्चों की हाईट बढाने के लिए शुरू से ही ऑबसेस्ड होती हैं. उनके पास एक लक्ष्य भी निश्चित होता है कि बच्चे की हाईट इतने सेंटीमीटर तक बढानी है. वे नहीं चाहती कि बड़े होकर उनके बच्चों को (दरअसल उन्हें भी) समाज में किसी तरह का भेदभाव झेलना पड़े या वो हीन भावना से ग्रस्त हों. जब कोरियाई महिलाएं गप-शप करती हैं तो वे अपने बच्चों की लंबी हाईट के बारे में बड़े गर्व से बताती हैं. ऐसे में छोटी हाईट के बच्चों की माएं अपने को कमतर महसूस करती हैं.

कम लम्बाई के बच्चों को स्कूल में भी चिढाया जाता है. ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है कि एक पांच फुट के ब्रिलियंट छात्र से छह फुट के लोफर लड़के का भविष्य ज्यादा उज्जवल है. ऐसी सोच के पीछे एक कारण पोपुलर कल्चर में अधिकाँश मशहूर लोगों का ऊँची हाइट वाला होना भी है. टीवी और फिल्मों में जितने भी पोपुलर अभिनेता और पॉप स्टार्स हैं सभी लंबे हैं. खेल में भी लंबे बच्चे नाम कमा रहे हैं. और आजकल कोरियाई किशोरों और युवा वर्ग में डॉक्टर, इंजीनियर बनने से ज्यादा पॉप आइडल या सेलिब्रिटी बनने का क्रेज है. ऐसे में हाईट एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैक्टर हो गया है.

इसलिए शुरू से ही बच्चों को तरह-तरह के हेल्थ ड्रिंक्स, विटामिन्स आदि दिए जाते हैं, विशेष प्रकार के व्यायाम करवाए जाते हैं, नियमित हेल्थ चेकअप करवाया जाता है. कोरिया में आजकल हाईट बढाने के विशेष सेंटर्स और क्लिनिक्स की भरमार है. कोइ इसके लिए एक्यूपंचर विधि को अपना रहा है तो कोई ओरिएंटल मेडिसिन को. योगा वाली दुकानें भी भारी तादाद में हैं. किशोरों को हार्मोन्स के नियमित इंजेक्शन दिए जा रहे हैं जो कि काफी मंहगे होते हैं. कई हाईट सेंटर्स के विज्ञापनों में लिखा होता है कि ‘अगर आप पढ़ाई में पिछड़ गए तो जीवन में कभी भी मेकअप कर सकते हैं. पर अगर हाईट बढाने में पीछे रह गए तो जीवन भर पीछे ही रह जायेंगे.’ इसलिए मम्मियां बच्चों की हाईट बढाने पर 1000-2000 डॉलर्स प्रतिमाह खर्च करने को तैयार हैं.

नौकरियों और यूनिवर्सिटी सेलेक्शन में हाईट को कितनी वरीयता दी जाती है ये तो नहीं पता पर मैंने कुछ कोरियाई लड़कों-लड़कियों से बात की कि वो हाईट के बारे में क्या सोचते हैं. लगभग सभी ने यही कहा कि गर्लफ्रेंड-बोयफ़्रेंड बनाते समय या जीवनसाथी चुनते समय वो हाईट को सबसे ज्यादा महत्व देंगी, जितनी ज्यादा हो उतना अच्छा. लड़कियों की हाईट के बारे में उनका कहना था कि ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अच्छे लड़के ‘छोटी’ लड़कियों को पसंद नहीं करते. चेहरा खराब हो तो प्लास्टिक सर्जरी करवाई जा सकती है (इस ट्रेंड पर एक पोस्ट जल्द ही) पर हाईट का तो कोइ उपाय नहीं.   इसलिए जिम और हेल्थ क्लबों में लड़कों से ज्यादा दुबली-पतली लडकियां कूदती-फांदती नज़र आती हैं.

मुझे इस ट्रेंड के पीछे एक और कारण लंबे अमेरिकन्स और यूरोपियन्स को देखकर कोरियाई लोगों का इन्फीरियर फील करना भी लगता है. कोरिया में अमेरिकन्स और यूरोपियन्स की अच्छी खासी संख्या है और कोरियाई लड़के और लडकियां दोनों ही कहीं न कहीं अपनी तुलना उनसे करते रहते हैं. पढाई और इकोनोमिक रूप से उनसे बराबर होने के बावजूद भी दो मामलों वे हमेशा अपने को उनसे कमतर महसूस करते हैं- एक हाईट और दूसरा अंग्रेजी. और इन दोनों चीजों में उनकी बराबरी तक पहुँचने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं.

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Dr. Satish Chandra Satyarthi

Dr. Satish Satyarthi is the Founder of CEO of LKI School of Korean Language. He is also the founder of many other renowned websites like TOPIK GUIDE and Annyeong India. He has been associated with many corporate companies, government organizations and universities as a Korean language and linguistics expert. You can connect with him on Facebook, Twitter or Google+

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