परसों बिहार में मैट्रिक (दसवीं) के रिजल्ट आया. बिहार में मैट्रिक के रिजल्ट के आगे आई आई टी, कैट, आई ए एस सब फेल…. खासकर गांवों में…… मैट्रिक माने पढ़ाई की पहली सीढ़ी. उसके बाद बी ए, एम्ए में कौन पास-फेल हो रहा है कौन देखता है.. परीक्षा देने वाले लड़कों से ज्यादा दुसरे लोग जोश में.. बड़े-बूढ़े, अड़ोसी-पड़ोसी सब रिजल्ट आने के एक महीने पहिले से लड़का लोग के नाक में दम कर देते हैं?
मैटरिक के रीजल्ट (एक बिहारी पोस्ट)
“का रे रिजल्ट कहिया आ रहा है? “
“अभी पता चलेगा साले केतना पढ़ते थे… “
“स्कूल में का है!! उहाँ तो सब पास हो जाता है.. मास्टर लोग सरवा पढ़ायेगा तब तो फेलो करेगा लइकन के.. “
“देखो के के निकलता है अबकी बार….टियूसन तो सब जाता है बस्ता टांग टांग के.. “
“अरे, टियूसन का पढ़ायेगा.. अपने आता है कुछ? सब पैसा ठगे के जोगाड़ है.. देखिएगा न केतना पास करता है जे…”
लड़का लोग का टेंशन के मारे पाखाना बंद… तरह-तरह का मनावा मनौती… हे दुरगा मईया अबकी निकाल दो कैसे भी करके.. सावा किलो लड्डू चढ़ाएंगे.. हे संकर बाबा, बाबाधाम जल ढार के आएँगे.. थरडो डबीजन से पास करबा दो…. जिनको नहाने के लिए माँ-बाप डेली एक सौ गारी देते थे वो सुबह ४ बजे उठके तुलसी में जल ढारने लगते हैं… जिनका परीक्षा थोड़ा गड़बड़ गया है उनका गाँव में निकलना दूभर.. जिधर जाएं उधर…
“का रे चांस है ई बार की नहीं? मरजाद तो न ले लेगा कहीं?” (**बिहार में शादी में जब बरात २ रात ठहरने के बाद विदा होती है तो उसको मरजाद बोलते हैं.. यहाँ मरजाद माने एक बार फेल होके दूसरी बार में पास करना)
रिजल्ट वाले दिन दही-वही खाके तिलक-भभूत लगा के फुलपैंट-बुशट में बाजार निकलते हैं काहे कि अखबार गाँव में आता नहीं है. पर इसका एक कारण और भी होता है.. रिजल्ट बाजार में देख लेने पर पास हुए तो उधर से सर-सिनेमा देख के सिंघाड़ा वगैरह खाके आयेंगे और फेल हुए तो सांझ तक उधरे रहेंगे.. तनिक अन्धेरा होवे के बाद आना सुरक्षित है.. नहीं तो घर में तो गारी सुनना ही है.. गाँव में घुसते ही बूढ़ा सब बोल-बोल के जान ले लेगा.. अखबार बेचने वालों का भी उस दिन चांदी होता है. ३ रूपये वाला अखबार १० रूपये तक में बेचा जाता है..
उधर गाँव के बूढ़े-बुजूर्ग उस दिन खैनी, बीडी वगैरह का दिन भर का कोटा लेके गाँव घुसने के रास्ते में ही कहीं पुल-पोखर पर बैठ जायेंगे.. कोई लड़का आता दिख गया तो एक साथ उस पर सवाल का बौछार..
“का रे, का हुआ?”
“फलनवा पास हुआ की नहीं?”
“चिलनवा के बेटा के का रीजल्ट आया?”
“जल्दी से बोलता काहे नहीं है रे?”
लड़का बेचारा परेशान.. किसका जवाब पहले दे..
अब अगर लड़का खुद पास हुआ तब तो आराम से वहीं बैठ जाएगा और शुरू….
“जानते हैं चचा.. एतना कडा परीक्षा था की सब कह रहा था की हम तो पासे नहीं करेंगे.. लेकिन हमको पता था की फस्ट नहीं तो सेकण्ड डबीजन तो जरुरे आयेगा.. देखिये आइये गया… लीजिये मिसरी खाइए..”
उसके बाद वो फेल हुए या उससे कम नंबर लाने वाले लड़कों का विश्लेषण करेगा…
“बुधन के बेटा को देखते थे न बाबा! तीन जगह टियूसन पढता था.. हमसे तेरह नंबर कमे लाया है..”
अपना पूरा बडाई का कोटा पूरा करके फिर सीना चौड़ा करके घर की तरफ चलेगा.. और उसके निकलने के बाद…
“लड़का था होनहार… देखिये निकालिए लिया…”
एक दुसरे बुढऊ: ” अरे निकालिए का लिया? ई साला चोरी (नक़ल) करने में बीहड़ था.. बेचारा बुधना के बेटा सीधा-साधा.. इमानदारी से लिखने में फेल हो गया ..”
उसके बाद तब तक ईमानदारी, नक़ल, व्यावाहारिकता और नैतिकता पर घनघोर बहस जब तक कि कोई अगला बकरा न आ जाए..
उधर पास होने वाले लड़कों के पिताजी उस दिन कुर्ता झाड के गली में कुर्सी लगाके बैठ जायेंगे.. और हर आने जाने वाले को जबरदस्ती रोका जाएगा.
“अरे मिसिर जी कहाँ जा रहे हैं”
“हाँ, ज़रा खाद लाने जा रहे हैं.. आके बतियाते हैं”
“अरे रुकिए, देखिये आपका लड़का एक नंबर से पास किया है.. आइये ज़रा आशीवाद दे दीजिये.. अरे! दौड़ के चचा के लिए एगो कुर्सी और चाय लेके आ..”
फेल करने वालों की बड़ी दुर्गति.. उस दन अँधेरे में आके किसी तरह बच भी गए तो अगले एक महीने तक गांव में निकलना तो दूभर ही है.. उधर घर में भी स्वागत होता है.. घरवाले पढ़े-लिखे होते हैं तब तो शब्द-बाण से काम चल जाता है.. नहीं तो गाली और जूता-लाठी का प्रसाद भी मिलता है… पर आज तक किसी को तनाव के कारण आत्महत्या करते नहीं देखा-सुना………………………….
राहुल सिंह says
वाह, गांव-गांव की कहानी.