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फेसबुक पर बहस कैसे जीतें

August 27, 2013 By Satish Chandra Satyarthi 3 Comments

How to Win an Argument on Facebook

ज्ञानी और बुद्धिजीवी होना दो अलग अलग चीजें हैं. ज्ञानी तो कोई भी हो सकता है पर बुद्धिजीवी होना सबके बस की बात नहीं. इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है – फेसबुक पर, ट्विटर पर. ब्लॉग्स की जमीन से जुड़ना पड़ता है. समाज, राजनीति, दर्शन, धर्म जैसे गूढ़ विषयों पर सतत ज्ञान ठेलना पड़ता है. क्योंकि विश्व को बदलने का पवित्र काम बुद्धिजीवी पूरी तरह अपने जिम्मे ले लेता है. अब मुझे अच्छी तरह पता है कि आप ज्ञानी और बुद्धिजीवी दोनों हैं. खासकर फेसबुक की अज्ञानी जनता को शिक्षित करना आपने अपने जीवन का परम उद्देश्य मान लिया है. और इसके लिए आप सदैव जो थोडा-बहुत ज्ञान आपके पास है वो फेसबुक पर ठेलते रहते हैं. आप लोगों को सदैव अपनी बातों पर बहस के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं. पर बहस से आपका मतलब हमेशा ‘आपके पक्ष में बहस’ होता है. लेकिन कई मूर्ख इस सरल सी बात को नहीं समझ पाते और आपकी बातों को घटिया और कूड़ा बताने लगते हैं. बातें घटिया और कूड़ा हैं ये आपको भी पता है लेकिन इसका ये मतलब थोड़े है कि कोई सरेआम बोल देगा. बुद्धिजीवी की अपनी प्रतिष्ठा है भई. इस पोस्ट का उद्देश्य यही है कि ऐसे नीचों, मूर्खों और दुष्टों को कैसे बहस में हराकर सबक सिखाया जाए. नीचे लिखे कुछ बिन्दुओं का ध्यान रखके आप आसानी से फेसबुक के ‘चर्चा-चक्रवर्ती’ बन सकते हैं.

१)      कुछ भी कूड़ा टाइप गलत-सलत लिखकर बहस शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आसपास भक्तों और चमचों का एक पूरा बैकअप सपोर्ट हो जो आपके लिखे कूड़े को भी अरस्तू और सुकरात के लेवल का बताए और आपकी बात को गलत कहने वाले पर दाना पानी लेकर पिल जाए. ऐसी प्रोडक्टिव टीम के साथ होने पर आप आधी बहस तो शुरू होने से पहले ही जीत जाते हैं.

२)      आपकी मजबूत टीम को देखकर कमजोर दिलवाले विरोधी तो बहस में घुसने का साहस ही नहीं करेंगे और चुपचाप या तो निकल लेंगे या अन्य विरोधियों के कमेंट्स को चुपके-चुपके लाइक करेंगे. लेकिन अगर कोई दुस्साहसी बहस शुरू करने की हिम्मत कर भी लेता है तो घबराएं नहीं. मैं आपको कुछ ऐसे अचूक नुस्खे बताऊंगा जिससे सामने वाला औंधे मुंह गिरने के बाद पानी भी नहीं मांगेगा.

३)      अगर विरोधी कोई प्रभावशाली सम्पादक, चैनल वाला, सरकारी अफसर या कोई ऐसा व्यक्ति हो जिससे भविष्य में आपको काम पड़ सकता हो तो “आप भी ठीक कह रहे हैं.. आप तो ज्ञानी हैं,  हें हें हें.. “ टाइप के कमेन्ट लिखकर बहस को वहीं ख़त्म करें. सामने वाले की तारीफ़ कर देने से सामने वाला बहस या तो शुरू ही नहीं करेगा या करेगा तो आक्रामक नहीं रहेगा.

४)      अब बात तब की, जब विरोधी ऐसा हो जिससे आपको निकट भविष्य में कोई काम नहीं पड़ने वाला. इस स्थिति में शुरू की पंक्ति का आक्रमण तो अपने भक्तों को ही संभालने दें. छोटे मोटे विरोधियों को तो वो ही अपने उल-जुलूल गंद टाइप कमेंट्स से पस्त कर देंगे. अगर भक्त जन गाली-गलौज पर उतर जाएं तो बीच-बीच में आकर इसकी हल्की सी निंदा कर दें. पर निंदा मीठी सी डांट टाइप होनी चाहिए जिससे कि भक्तजन बुरा न मान जाएं और अपने काम में लगे रहें.

५)      जब आपको लग जाये कि विरोधी कुछ ज्यादा ही दुस्साहसी है और आपके भक्त अब उसके तर्कों के आगे नहीं टिक पा रहे हैं तो आप बहस में प्रवेश करें पर इस मुद्रा में कि आप सामने वाले के निम्न स्तर के तर्कों का उत्तर देकर उसपर कृपा कर रहे हैं. आप नीचे दिए गए (कु)तर्कों से कड़े से कड़े बहसबाज को चारों खाने चित कर सकते हैं.

६)      “आप कमेन्ट करने से पहले मेरी बात को फिर से ठीक से पढ़ें” इस तर्क के द्वारा बिना कहे आप यह सिद्ध कर देंगे कि सामने वाला या तो मूर्ख है और बात को ठीक से समझे बिना तर्क कर रहा है या फिर उसमें आपकी उच्च कोटि की बात को समझने की उसके पास काबिलियत ही नहीं है.

७)      “आपको इस विषय के बारे में कुछ पता ही नहीं है. आप पहले फलाना और ढिमकाना फिलोस्फर्स को ठीक से पढ़ें, इतिहास को समझें फिर बहस करें.” ऐसा आप इस कॉन्फिडेंस के साथ कहें कि जैसे आपने उन सारे दार्शनिकों के दर्शन और पूरे इतिहास को घोंट रखा हो. इस तर्क के आगे अच्छे-अच्छे विद्वान बहसबाज का आत्मविश्वास चुक जाएगा. आप दार्शनिकों का नाम ढूँढने के लिए गूगल सर्च और विकिपीडिया की मदद ले सकते हैं. संभव हो तो झटपट इंटरनेट से ढूंढ कर बड़े-बड़े क्लिष्ट पेजों के दस-बीस लिंक दे दें और बोलें कि इनको पढ़के आयें फिर आप ठीक से इस मुद्दे पर बहस कर पाएंगे. लिंक चुनते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि सामग्री इतनी जटिल और बोरिंग हो कि उसका लेखक खुद भी उसे दुबारा पढने की हिम्मत न कर पाए.

८)      “लगता है आपने भारतीय संविधान/ वेद/ कुरआन/ बाइबिल/ अलाना-फलाना ग्रन्थ का ठीक से अध्ययन नहीं किया.” यह तर्क भी अचूक है. क्योंकि आपको पता है कि आज तक देश में किसी ने भी इन सारे ग्रंथों का ‘ठीक से’ अध्ययन नहीं किया. आपने तो एक बार इन्हें पलट के भी नहीं देखा. लेकिन इस तर्क से आपकी ऐसी इमेज बनेगी जैसे आपने इन ग्रंथों पर शोध कर रखा हो. इससे आपका वर्तमान विरोधी तो तिलमिला ही जायेगा साथ में भविष्य में भी लोग आपसे बहस करने से पहले दस बार सोचेंगे.

९)      “आप पूंजीवादी, साम्प्रदायिक, ब्राह्मणवादी,  और मनुवादी हैं. आप गरीब जनता के दुश्मन हैं, देशद्रोही हैं, गद्दार हैं’ इस तरह के तर्क के बाद अधिकाँश समझदार विरोधी मैदान छोड़ कर भाग खड़े होंगे. ऐसा आरोप लगाने से पहले व्यक्ति का बैकग्राउंड वगैरह जानने में समय बिलकुल नष्ट न करें. ऐसा तर्क करने से यह बात स्वयंसिद्ध हो जायेगी कि आप पूंजीवादी, साम्प्रदायिक, ब्राह्मणवादी और मनुवादी नहीं हैं और गरीब जनता के सच्चे हितैषी हैं. आप विरोधी को यह भी कह सकते हैं कि “आप सामाजिक सरोकारों से नहीं जुड़े हैं, आप सिर्फ एसी कमरे में बैठकर बहस करने वाले हैं वगैरह वगैरह.” इससे आपके जमीन से जुड़े होने का प्रमाण मिलेगा.

१०)   आपके इन सारे जाबड़ तर्कों के बाद भी अगर सामने वाला अपने तर्कों और तथ्यों के साथ डटा   हुआ है तो आप अंतिम अस्त्र अर्थात सरेआम गाली-गलौज और लंगटई पर उतर सकते हैं. मुझे पता है कि आप इस हथियार का इस्तेमाल बहस के शुरू में ही करना चाहते थे पर अब तक धैर्य धारण कर आपने अपने संस्कारों का परिचय दिया. अब आप विरोधी के रंग-रूप, धर्म, जाति, खानदान आदि पर जोरदार प्रहार करें. उसके परिवार की स्त्रियों को भी बहस में घसीट कर अपनी गंवई या परिष्कृत गालियों से उनका उचित सम्मान कर सकते हैं. यह अपने लंठ भक्तों को भी सांड की तरह खुला छोड़ देने का भी उचित समय है. उम्मीद है इस चरण के बाद बहस में आप विजेता की तरह सर ऊँचा किये खड़े होंगे.

बोनस टिप्स:- अगर कोई विरोधी ज्यादा ही पढ़ा लिखा और समझदार लग रहा हो और बड़े ही सटीक शब्दों में अपनी बात रख रहा हो और उसके साथ चाहकर भी आप लंगटई पर न उतर पा रहे हों तो आप दो अचूक अस्त्रों का इस्तेमाल करें – १. चुप्पी – बाकी सारे उल-जुलूल कमेंट्स का जवाब देते चलें पर उसके तर्कों को लगातार इग्नोर करते रहें. इससे वो अंत में अपने आप थककर बहस छोड़ कर निकल जाएगा और बाकी लोगों को लगेगा कि शायद उसके तर्क आपके विद्वता के स्तर से काफी नीचे थे इसलिए आपने उनका उत्तर देना वाजिब नहीं समझा. २. ब्लॉक – ऐसे समझदार लोगों को अपने आसपास रखना समझदारी का काम नहीं है. ये कभी भी सरे बाजार आपकी धोती उतार सकते हैं. इसलिए इनको तुरंत प्रभाव से ब्लॉक कर दें. और इनके स्थान पर दो चार मूर्ख भक्तों की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लें.

*महत्वपूर्ण नोट: बहस के दौरान कभी भी अपनी बात को सरल शब्दों और वाक्यों में न रखें. इससे आपकी बेवकूफी पकड़ी जा सकती है. हमेशा क्लिष्ट शब्दों और दो चार लाइन के लम्बे वाक्यों का इस्तेमाल करें. भार्गव की डिक्शनरी, हिन्दी साहित्य के क्लिष्ट शब्दों का कलेक्शन और दस-बीस अंग्रेजी दार्शनिकों के नाम की लिस्ट को हैंडी रखें. बीच-बीच में किसी फिलौस्फर की अंग्रेजी में कही बात को इंटरनेट से कॉपी पेस्ट मार दें. ध्यान दें कि मूल लेखक का नाम हटाकर यह लिखना न भूलें कि यह विचार अभी-अभी आपके दिमाग में आया. शायरी और कविता की कुछ किताबें भी अपनी टेबल पर रखें. खासकर प्रगतिशील टाइप कवि और शायरों के किताबें ज्यादा कारगर होती हैं.

और सबसे महत्वपूर्ण बात: इन टिप्स को अपने विरोधियों के साथ बिलकुल शेयर न करें.

Filed Under: Featured, Humor, टेक्नोलॉजी, हिन्दी Tagged With: फेसबुक, बहस

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Comments

  1. Smart Indian - अनुराग शर्मा says

    August 28, 2013 at 9:29 AM

    धन्य भाग हमारे, दर्शन हुए तुम्हारे!
    🙂

    Reply
    • Satish says

      August 28, 2013 at 10:52 AM

      😉

      Reply

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