क्या आप जानते हैं कि दुनिया की सबसे बेहतरीन और तेज इंटरनेट सेवा किस देश में है? अगर आप सोच रहे हैं कि ‘अमेरिका’ होगा तो आप गलत हैं. इंटरनेट को जन्म देने वाले अमेरिका ने खुद माना है कि इस देश की औसत इंटरनेट स्पीड को छूने में उसे अभी कम से कम डेढ़ दशक लगेंगे. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि वह देश है दक्षिण कोरिया– वह देश जो आज से ५ दशक पहले भुखमरी से जूझ रहा था, जिसके नागरिकों को एक कटोरी चावल के लिए अमेरिका की चैरिटी पर निर्भर रहना पड़ता था. आज इस देश की ९५ प्रतिशत जनता तीव्र गति के ब्रौडबैंड इंटरनेट से जुडी है. इसकी राजधानी सियोल को दुनिया का ब्रौडबैंड कैपिटल कहा जाता है. कोरिया वह पहला देश है जिसने सबसे पहले ‘डायल-अप’ कनेक्शंस को श्रद्धांजलि दी.
मैंने जेएनयू में कोरिया के बारे में अध्ययन के दौरान ये पढ़ा था कि कोरिया में इंटरनेट बहुत तेज है पर तब ‘बहुत तेज’ का पैमाना कुछ और था. उस समय जेएनयू में एम टी एन एल का ब्रौडबैंड इस्तेमाल कर रहा था. किराया था ७५० रूपये प्रति महीना. स्पीड थी २५६ किलोबाईट प्रति सेकण्ड जो कि बाहर कैफे की स्पीड से बहुत तेज लगता था. औसतन एक मूवी रात भर में डाउनलोड हो जाती थी. कभी कभी ४-५ घंटे में भी. यूट्यूब पर कुछ देखने के लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ता था, बफरिंग होती थी. बाकी साइट्स तो जल्दी ही खुलती थीं. तो उस समय लगता था कि वहाँ यूट्यूब में बफरिंग नहीं होती होगी और क्या.

तो इन सबके पीछे कारण क्या है? कुछ लोग कहते हैं कि जनसंख्या और क्षेत्रफल के मामले में कोरिया एक बहुत छोटा देश है इसलिए इसे तेज़ इंटरनेट से जोड़ना आसान है. पर अगर हम एशिया में ही देखें तो हांगकांग और सिंगापुर जैसे कई देश हैं जो अर्थवयवस्था में कहीं से पीछे नहीं हैं और जनसख्या अथवा क्षेत्रफल के मामले में भी वो कोरिया से ज्यादा अनुकूल स्थिति में हैं पर वे भी इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्पीड में कोरिया से पीछे हैं. दूसरा यह भी कि भौगोलिक रूप से कोरिया दुनिया के कठिन क्षेत्रों में से एक है जहाँ ७० प्रतिशत क्षेत्र पहाडी है. ऐसे में गांव-गाँव तक ब्रौडबैंड केबल बिछाना और वायरलेस नेटवर्क स्थापित करना निश्चित रूप से आसान काम तो नहीं ही रहा होगा.
मेरे विचार में इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है सरकार की नीतियाँ. यहाँ सरकार ने इंटरनेट का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने और उसे आम जनता तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका अदा की है और अभी भी कर रही है. भारत में देखें तो यह काम पूरे तौर पर सर्विस प्रदाताओं पर छोड़ दिया गया है. अब स्थिति यह है कि दिल्ली के ही कनाट प्लेस के आसपास के एरिया में आपको १०० इंटरनेट सर्विस प्रदाता मिल जायेंगे तो वहीं सागरपुर जैसे मुहल्लों में मुशिकल से एकाध. गांवों में तो हैं ही नहीं. जाहिर है कि कम्पनियां वहीं पूंजी लगाएंगी जहाँ उन्हें ज्यादा फायदा है. कम से कम सरकार को शुरू में उन्हें इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने में मदद करनी चाहिए.
दूसरा कारण है कि यहाँ सरकार ने इस क्षेत्र में प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया. नयी कंपनियों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया. बड़ी कंपनियों पर यह शर्त लगाई गयी कि उन्हें अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक शुल्क के साथ छोटी कंपनियों के साथ शेयर करना होगा. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी बड़ी कंपनी ने किसी क्षेत्र तक अपने केबल बिछाए हुए हैं और कोई छोटी कंपनी उन केबल्स का उपयोग कम शुल्क पर सेवाएं देने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है तो वह उसे किराये पर देने से इंकार नहीं कर सकती. इसलिए ऐसी छोटी कम्पनियां भी बाज़ार में उतर सकती हैं जिनके पास इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने के लिए बड़ी पूंजी नहीं है. भारत में मेरे ख़याल से ऐसा नहीं है. तीसरा कारण यहाँ का उच्च जनसंख्या घनत्व है. अधिक से अधिक जनसंख्या एक जगह केंद्रित है. ऐसे में लोगों को कनेक्ट करना आसान होता है.
वर्तमान में कोरियाई सरकार एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही है जिसका लक्ष्य है २०१२ तक देश के हर घर को १ जीबी की रफ़्तार वाले नेट से जोड़ना. मुझे तो सोच कर ही रोमांच सा हो रहा है- १ जीबी/सेकण्ड!!!!! और हमारे यहाँ तो लोग २जी स्पेक्ट्रम में ही लूट मचाये हैं अभी..
सरजी हालाँकि मै एक मराठी हूँ लेकिन आपका ये ब्लॉग बहोत ही भा गया मुझे एक ही दिन बैठके सारे पोस्ट पढ़ लिए मैंने और सबसे बढ़िया तो वो फेसबुक प्राणियों का लगा बहोत ही रोचक और मजेदार! ब्लौग के जरिये कैसे पैसा कमाया जा सकता है इसकी भी जानकारी मिली…बहोत आभार आपका..आपके विचारों से प्रेरित हुआ हूँ!
धन्यवाद सर….