“मां, स्कूल से आते वक्त रास्ते में रोज उस मोहल्ले के चार लड़के मेरे पीछे-पीछे साइकिल पर आते हैं. कभी-कभी उल्टा-पुल्टा, गन्दा-संदा भी बोलते रहते हैं. आज मैंने पलट के जोर से गालियाँ दी, पांच मिनट तक. आसपास के अंकल जी लोग भी जमा हो गए. पर सब उन लड़कों की जगह मुझे ही अजीब टाइप से घूर रहे थे. जैसे मैंने ही गलत किया हो.”
“तुझे क्या जरूरत थी रुक कर उनसे मुंह लगने की. तुझे कितनी बार बोला है कि रास्ते में इधर-उधर किसी से कोई मतलब मत रखा कर. कौन साइकिल से कहाँ जा रहा है क्या बोल रहा है इससे तुझे क्या. वो तो बेशरम कुत्ते हैं ही, उनसे मुंह लगके तेरा ही मुंह ख़राब होगा.
चल अब हटा बीती बात को. और सुन, भूल के भी ये सब अपने भाई को मत बताना. तुझे तो डांटेगा ही, फालतू का लड़-वड़ के और आ जाएगा. और पापा को तो बिलकुल भी मत बताना. वरना जो स्कूल जाती है वो भी बंद हो जायेगा.”
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सतीश जी , आज के हालात को और उससे अधिक मानसिकता को प्रदर्शित करती ये पोस्ट प्रभावित कर गई
मेरे कॉलेज की दो लड़कियों के साथ अक्षरशः यही घटा था…उनके महल्ले के दो लड़के बहुत तंग करते थे …पर वे डर के मारे घर पर नहीं बताती थीं कि कॉलेज आना बंद हो जाएगा..
पोस्ट पर लगे चित्र ने दिल खुश कर दिया …