“यार ये उधर मोड़ पर क्या हल्ला हो रहा है?”
“अरे वो गली नंबर दो वाले शर्मा जी की लड़की को मोड़ पर वाले दो-चार लड़कों ने कुछ बोल दिया था. उसी का मजमा लगा है. शर्मा जी गाली दे रहे हैं और लोग खड़े होकर मजा ले रहे हैं.”
“अच्छा-अच्छा.. ये मोड़ पर के लौंडे तो सारे बिगड़े हैं ही. पर यार ये शर्मा भी कम अंग्रेज थोड़े न है. चार बित्ते कि लौंडिया को साइकिल और मोबाइल पकड़ा दिया है. कान में इयरफोन लगाके चकल्लस काटती फिरती है. किसी मनचले ने कुछ बोल दिया होगा. जवान लौंडे हैं, अभी नहीं ये सब करेंगे तो कब करेंगे. अपनी लड़की संभाली नहीं जाती, चले हैं मोहल्ले पे फौजदारी करने.”
“बात तो सही ही कहे हो चौधरी. लड़की सही हो तो कोइ आँख उठा के ना देख सके.”
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प्रतिभा सक्सेना says
यही मनोवृत्ति है ,जिन्हें लड़कियाँ अंकल कहती हैं उनमें इतनी नैतिकता कहाँ बची कि पराई बहू-बेटी को अपनी के जैसा समझें?
Satish says
सही बात है..
rashmiravija says
और लोगों की नज़रों में सही लड़की वो है ,जो सर और आँखें झुका कर घर से बाहर जाए और वापस लौटे.
पता नहीं कितनी सदी लगेगी ये मानसिकता बदलने में