जब तक बाबा (दादाजी) जीवित थे उन्होंने गीताप्रेस गोरखपुर से एक पत्रिका सबस्क्राइब कर रखी थी – कल्याण. वे उस पत्रिका में लिखते भी थे. पत्रिका हर महीने आती थी. मैं खूब देखता था यह पत्रिका. लेख भयंकर संस्कृत के शब्दों में लिखे होते थे, छोटा था, समझ तो उस समय क्या आता पर कुछ-कुछ… Continue Reading …
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